खफा मुहब्बते खुर्शीद औ मनाने से,
फरेब लोभ के अस्काम घर बसाने से ।
इक आदमियत खफा हो चला जमाने से,
इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से ।
नदीम खास मेरा अब नही रहा साथी,
फुवाद टूट गया उसको अजमाने से ।
जलील आज बहुत हो रहा यराना सा..ब
वो छटपटाते निकलने गरीब खाने से ।
असास हिल रहे परिवार के यहां अब तो
वफा अदब व मुहब्बत के छूट जाने से
नमस्कार !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [11.11.2013]
चर्चामंच 1426 पर
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सादर
सरिता भाटिया
अवसर प्रदान करने के लिये सादर साधुवाद आदरणीया सरिताजी
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