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रविवार, 10 नवंबर 2013

तरही गजल


खफा मुहब्बते खुर्शीद औ मनाने से,
फरेब लोभ के अस्काम घर बसाने से ।

इक आदमियत खफा हो चला जमाने से,
इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से ।

नदीम खास मेरा अब नही रहा साथी,
फुवाद टूट गया उसको अजमाने से ।

जलील आज बहुत हो रहा यराना सा..ब
वो छटपटाते निकलने गरीब खाने से ।

असास हिल रहे परिवार के यहां अब तो
वफा अदब व मुहब्बत के छूट जाने से

2 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्कार !
    आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [11.11.2013]
    चर्चामंच 1426 पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
    सादर
    सरिता भाटिया

    जवाब देंहटाएं
  2. अवसर प्रदान करने के लिये सादर साधुवाद आदरणीया सरिताजी

    जवाब देंहटाएं