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सोमवार, 25 नवंबर 2013


















मुश्किल हो लाख, नमनीदा न हो
जिन्दगी ही क्या, जो पेचीदा न हो।
जो न मुस्कराते रहें, वो लब नहीं
जख्म वो कैसा जो पोशीदा न हो।
खुश न हो इतना, बहारें देखकर
गर खिजां आये तो रंजीदा न हो।
जुर्म करने के लिए जब हो उठे
हाथ वो कैसा जो लरजीदा न हो।
होठ हंसने के लिए जाएं तरस
इस कदर भी कोई संजीदा न हों।

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