पाई नाव चुनाव से, खर्चे पूरे दाम |
लूटो सुबहो-शाम अब, बिन सुबहा नितराम |
बिन सुबहा नितराम, वसूली पूरी करके |
करके काम-तमाम, खजाना पूरा भरके |
थाम नाव पतवार, चली रविकर अधमाई |
सात समंदर पार, जमा कर पाई पाई ||
लाज लूटने की सजा, फाँसी कारावास |
देश लूटने पर मगर, दंड नहीं कुछ ख़ास |
दंड नहीं कुछ ख़ास, व्यवस्था दीर्घ-सूत्रता |
विधि-विधान का नाश, लोक का भाग्य फूटता ।
बेचारा यह देश, लगा अब धैर्य छूटने ।
भोगे जन-गण क्लेश, लगे सब लाज लूटने ॥
देश लूटने पर मगर दंड नही कुछ खास ,बेहतरीन व्यंग रचना ,बधाई
जवाब देंहटाएंलगे सब लाज लूटने.....क्या बात है रविकर ...बहुत खूब.....
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