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बुधवार, 13 नवंबर 2013

तन्हाई की जीत


तन्हाई की जीत
पाने को आतुर रहतें हैं खोने को तैयार नहीं है
जिम्मेदारी ने मुहँ मोड़ा ,सुबिधाओं की जीत हो रही


साझा करने को ना मिलता , सब अपने गम में ग़मगीन हैं
स्वार्थ दिखा जिसमें भी यारों उससे केवल प्रीत हो रही


कहने का मतलब होता था , अब ये बात पुरानी है
जैसा देखा बैसी बातें .जग की अब ये रीत हो रही


अब खेलों में है राजनीति और राजनीति ब्यापार हुई
मुश्किल अब है मालूम होना ,किस से किसकी मीत हो रही


क्यों अनजानापन लगता है अब, खुद के आज बसेरे में
संग साथ की हार हुई और तन्हाई की जीत हो रही

 
प्रस्तुति: मदन मोहन सक्सेना

3 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार भाई जी-

    हाई-फाई सोच है, नहीं तनिक भी लोच |
    जहाँ जरुरत दिख गई, वहीँ लिया झट नोच |
    वहीँ लिया झट नोच, मोच आये तो आये |
    सरपट जाते भाग, अगर कोई बहकावे |
    रविकर पर फँस जाय, एक दिन वह मुस्काई |
    रह रह दिल बिल-खाय, लगे अच्छी तन्हाई ||

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।। त्वरित टिप्पणियों का ब्लॉग ॥

    जवाब देंहटाएं
  3. अब खेलों में है राजनीति और राजनीति ब्यापार हुई
    उत्कृष्ट प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं