श्याम स्मृति
प्रेम व्यक्ति के वश में नहीं , प्रेम में भावुकता एवं प्रेम विवाह .....
प्रेम होना या करना एक अलग बात है वह व्यक्ति के वश में नहीं है । परिस्थितियाँ ही नियति बनकर व्यक्ति को भवितव्य की ओर धकेलती हैं तथा भविष्य तय करती हैं। हाँ, व्यक्ति की स्वयं की दृड़ता जो आदर्शों, विचारों, कुल व समाज की स्थिति से बनती है इसमें बहुत प्रभाव डालती है । अपने प्यार को प्राप्त कर लेना, प्रेमी से प्रेम-विवाह एक सौभाग्य की बात है । परन्तु एक अन्य पक्ष यह भी है कि प्रेम को भौतिक रूप में पा लेना या प्रेम विवाह कोई इतना महत्वपूर्ण व आवश्यक भी नहीं है कि उसके लिए संसार में सब कुछ त्यागा जाय । यह इतनी बड़ी उपलब्धि भी नहीं है कि प्राण त्यागने को भी प्रस्तुत रहा जाय, जो ईश्वरीय देन है । क्योंकि- ' आत्म एव यह जगत है ' वस्तुतः हम प्रत्येक कार्य सिर्फ स्वयं के लिए ही करते हैं । परमार्थ में भी आत्म-सुख का भाव छुपा रहता है । सभी बंधन,
सहयोग भी आत्मार्थ से ही जुड़े रहते हैं। हम देंगे तभी मिलेगा भी आत्मार्थ भाव ही है । अतः सिर्फ प्रेम-विवाह की जिद में सारा केरियर, सांसारिक सम्बन्ध यहाँ तक कि जीवन भी खोना पड़ता है तो शायद यह बहुत अधिक मूल्य है । संसार में ऐसी कौन सी प्रेम-कथा है जो इस तरह के सम्बन्ध में परिणत होकर उन्नत शिखर पर पहुँची हो, या जो सुखान्त हो एवं जिससे देश व समाज या व्यक्ति स्वयं उन्नत हुआ हो ।
प्रायः कहा जाता है कि महिलायें भावुक होती हैं । परन्तु यह सर्वदा सत्य नहीं है । वैदिक विज्ञान के अनुसार . पराशक्ति -पुरुष सिर्फ भाव रूप में शरीर या किसी पदार्थ में प्रविष्ट होता है जबकि अपरा-शक्ति नारी, प्रकृति, माया, शक्ति या ऊर्जा रूप है जो पदार्थों व शरीर के भौतिक रूप का निर्माण करती है । अतः पुरुष भाव-रूप होने से अधिक भावुक होते हैं, स्त्रियाँ इसका लाभ उठा पाती हैं ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति है -परा ईश्वर की दिव्य शक्ति है। जीवात्मा उसी का अंश है। अपरा निकृष्ट शक्ति है ,एक्सटर्नल- एनर्जी ,माया है अपरा शक्ति। /आपने नारी को अपरा कैसे कह दिया कौन से वैदिक ग्रन्थ में ऐसा लिखा है कृपया उद्धृत करें।
धन्यवाद वीरेन्द्र जी.....
हटाएं---- भाई जी ..पहले तो कोइ भी शक्ति ..निकृष्ट नहीं होती है शक्ति, शक्ति है निकृष्ट क्यों होगी ....वह तो निरपेक्ष होती है...
---- सभी वैदिक वांग्मय के अनुसार, सृष्टि-सृजन वर्णन करते समय... --अद्वैत अव्यक्त-ब्रह्म...परा-अपरा दो रूप-भाव में व्यक्त होता है .. जो व्यक्त पराशक्ति = व्यक्त परब्रह्म एवं व्यक्त अपराशक्ति = आदिशक्ति प्रकृति होते हैं ...
---प्रत्येक हिन्दू व वैदिक ग्रन्थ में ही नहीं शास्त्रीय, सामान्य व काव्य ग्रंथों में भी...नारी को प्रकृतिरूपा, मायारूपा, आदिशक्ति कहा गया है ....
सुन्दर प्रस्तुति है -परा ईश्वर की दिव्य शक्ति है। जीवात्मा उसी का अंश है। अपरा निकृष्ट शक्ति है ,एक्सटर्नल- एनर्जी ,माया है अपरा शक्ति। /आपने नारी को अपरा कैसे कह दिया कौन से वैदिक ग्रन्थ में ऐसा लिखा है कृपया उद्धृत करें।
जवाब देंहटाएं" प्रायः कहा जाता है कि महिलायें भावुक होती हैं । परन्तु यह सर्वदा सत्य नहीं है । वैदिक विज्ञान केअनुसार . पराशक्ति -पुरुष सिर्फ भाव रूप में शरीर या किसी पदार्थ में प्रविष्ट होता है जबकि अपरा-शक्ति नारी,प्रकृति, माया, शक्ति या ऊर्जा रूप है जो पदार्थों व शरीर के भौतिक रूप का निर्माण करती है । अतः पुरुष भाव-रूप होने से अधिक भावुक होते हैं, स्त्रियाँ इसका लाभ उठा पाती हैं ।"
शर्मा जी......
हटाएं------ऋग्वेद में माया को ही आदिशक्ति कहा गया है
-------देवी भागवत के अनुसार - 'समस्त विधाएँ, कलाएँ, ग्राम्य देवियाँ और सभी नारियाँ इसी आदिशक्ति की अंशरूपिणी हैं।
सूक्ति में देवी कहती हैं - ----
'अहं राष्ट्री संगमती बसना
अहं रूद्राय धनुरातीमि' .........अर्थात् - 'मैं ही राष्ट्र को बांधने और ऐश्वर्य देने वाली शक्ति हूं । मैं ही रूद्र के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाती हूं। धरती, आकाश में व्याप्त हो मैं ही मानव त्राण के लिए संग्राम करती हूँ।' विविध अंश रूपों में यही आदिशक्ति सभी देवताओं की परम शक्ति कहलाती हैं, जिसके बिना वे सब अपूर्ण हैं, अकेले हैं, अधूरे हैं।