अध्यात्म जगत सूर्य को सजल प्रणाम
प्रणाम !प्रणाम !
जगद्गुरुकृपालु महाराज से पूर्व जगत गुरु होने का सौभाग्य चार आचार्यों
को मिला था। वे अपने अपने अध्यात्म जगत के सूर्य थे।सदियों के बाद ये
ऐसे अध्यात्म भास्कर उदित हुए जिन्हें वेद ,पुराण ,स्मृति ग्रन्थ अन्य
शास्त्र ,षड दर्शन और अध्यात्म दर्शन के अन्य सभी शिखर ग्रन्थ न
केवल
कंठस्थ थे बल्कि उनके मर्म का उदघाटन करने में जो सिद्धस्थता उन्हें
प्राप्त थी उन जैसा विद्वान पिछले सौ वर्षों में नहीं पैदा हुआ है। वे न
केवल विद्वत्ता के उच्च शिखर पर थे बल्कि भक्ति रसावतार के पूर्ण
पुरुष भी थे। राधा भाव की भक्ति करते हुए वे प्राय :भाव समाधि में चले
जाते थे।
वेदांत के साथ भक्ति भाव विवेचन अध्यात्म क्षेत्र का एक विरला संयोग
है। जो उन्हें पूर्ण ब्रह्म की ओर से वरदान रूप में प्राप्त था। ऐसे पुण्य पुरुष
युगों के बाद कभी अवतरित होते हैं। उनको सुनने देखने वाले हम सभी
भाग्यवान हैं।ऐसे युगपुरुष हमारे उपस्थित वर्तमान के आशीर्वाद के रूप में
हमारी दृष्टि विषय बने .
http://www.youtube.com/results?search_query=kripalujimaharaj&sm=3
प्रणाम !प्रणाम !
जगद्गुरुकृपालु महाराज से पूर्व जगत गुरु होने का सौभाग्य चार आचार्यों
को मिला था। वे अपने अपने अध्यात्म जगत के सूर्य थे।सदियों के बाद ये
ऐसे अध्यात्म भास्कर उदित हुए जिन्हें वेद ,पुराण ,स्मृति ग्रन्थ अन्य
शास्त्र ,षड दर्शन और अध्यात्म दर्शन के अन्य सभी शिखर ग्रन्थ न
केवल
कंठस्थ थे बल्कि उनके मर्म का उदघाटन करने में जो सिद्धस्थता उन्हें
प्राप्त थी उन जैसा विद्वान पिछले सौ वर्षों में नहीं पैदा हुआ है। वे न
केवल विद्वत्ता के उच्च शिखर पर थे बल्कि भक्ति रसावतार के पूर्ण
पुरुष भी थे। राधा भाव की भक्ति करते हुए वे प्राय :भाव समाधि में चले
जाते थे।
वेदांत के साथ भक्ति भाव विवेचन अध्यात्म क्षेत्र का एक विरला संयोग
है। जो उन्हें पूर्ण ब्रह्म की ओर से वरदान रूप में प्राप्त था। ऐसे पुण्य पुरुष
युगों के बाद कभी अवतरित होते हैं। उनको सुनने देखने वाले हम सभी
भाग्यवान हैं।ऐसे युगपुरुष हमारे उपस्थित वर्तमान के आशीर्वाद के रूप में
हमारी दृष्टि विषय बने .
http://www.youtube.com/results?search_query=kripalujimaharaj&sm=3
Did you mean: kripaluji maharaj
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार को (18-11-2013) कार्तिक महीने की आखिरी गुज़ारिश : चर्चामंच 1433 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'