आदि अभाव अकाम अज,
अगुन अगोचर आप,
अमित अखंड अनाम
भजि,श्याम मिटें त्रय-ताप | १
त्रिभुवन गुरु औ जगत
गुरु, जो प्रत्यक्ष सुनाम,
जन्म मरण से मुक्ति
दे, ईश्वर करूं प्रणाम | २
हे माँ! ज्ञान
प्रदायिनी,ते छवि निज उर धार,
सुमिरन कर दोहे रचूं,
महिमा अपरम्पार | ३
श्याम सदा मन में
बसें, राधाश्री घनश्याम,
राधे राधे नित जपें, ऐसे श्रीघनश्याम | ४
अंतर ज्योति जलै
प्रखर, होय ज्ञान आभास,
गुरु जब अंतर बसि
करें,गोविंद नाम प्रकाश | ५
शत शत वर्षों में
नहीं, संभव निष्कृति मान,
करते जो संतान हित,
मातु-पिता वलिदान |६
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (17-11-2013) को "लख बधाईयाँ" (चर्चा मंचःअंक-1432) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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गुरू नानक जयन्ती, कार्तिक पूर्णिमा (गंगास्नान) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जवाब देंहटाएंत्रिभुवन गुरु औ जगत गुरु, जो प्रत्यक्ष सुनाम,
जन्म मरण से मुक्ति दे, ईश्वर करूं प्रणाम | २
हे माँ! ज्ञान प्रदायिनी,ते छवि निज उर धार,
सुमिरन कर दोहे रचूं, महिमा अपरम्पार | ३
श्याम सदा मन में बसें, राधाश्री घनश्याम,
राधे राधे नित जपें, ऐसे श्रीघनश्याम | ४
अंतर ज्योति जलै प्रखर, होय ज्ञान आभास,
गुरु जब अंतर बसि करें,गोविंद नाम प्रकाश | ५
शत शत वर्षों में नहीं, संभव निष्कृति मान,
करते जो संतान हित, मातु-पिता वलिदान |६
भाव और अर्थ सौंदर्य से संसिक्त दोहावली।