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सोमवार, 4 नवंबर 2013

नरेंद्र मोदी इस लायक नहीं हैं की उन्हें हिंदुस्तान का वजीरे आलम बनाया जाए

ये रिपोर्ट प्रकाशित करके सुमन रणधीर सिंह जी आप किसे बहका रहे हैं। अमरीका में नरेंद्र दामोदर मोदी साहब को हिंदुस्तान के इकोनोमिक सर्च इंजन के बतौर जाना जाता है। अमरीकी हिंदुस्तान को आज गुजरात की वजह से जानते हैं गुजरात बोले तो कॉन्स्टेंट इकोनोमिक ग्रोथ।

भले आदमी वकालत करने से कोई वकील नहीं बन जाता है। हम यहाँ १३ जून २०१३ से बराबर बने हुए हैं। वापसी १४ नवंबर की है। और यह हमारा यहाँ  का पांचवां चक्कर हैं।मिशिगन राज्य के अलावा ओहायो ,पिंसिल्वानिया ,वाशिंगटन डी सी ,न्यूयॉर्क ,केलिफोर्निया ,इलिनॉय ,वेस्ट वर्जीनिया अंदर ,नेवाडा  तक देखने, एक बड़े क्रॉस सेक्शन से बतियाने के बाद ही हम ऐसा लिख रहे हैं।

और ये सेकुलर लोग कौन हैं हिंदुस्तान में ?वो जो -

(१ ) शाहबानों का हक़ छीन चुके हैं।

(२) ओसामा को ओसामा जी कहते हैं। एक भोपाली बाज़ीगर का बस चले तो इनका मकबरा ही भोपाल में क्या अपने घर के आँगन में बनवा दे।

(३) क्या वह लोग सेकुलर हैं जो हिंदुस्तान की संपत्ति पे मुसलामानों का पहला हक़ बतलाते हैं।

(४) मुसलामानों को धार्मिक आधार पे आरक्षण की बात करते हैं।
(५ )नेशनल एडवाइज़री कोंसिल उनकी हिमायत करने के लिए बना बैठे हैं और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को इन्हें न्यूनतम वेतन देते नहीं बनता।

(६ )क्या वो लोग सेकुलर हैं जो संविधान के साथ बारहा छेड़खानी क्या मनमानी करने के बाद जाते जाते उसपे सेकुलर की चिप्पी लगा गए ?

ये सेकुलर सरकार किस चिड़िया का नाम है ?

वह जो कोयला चुगती है। चारा खाती है। जिसके कई चहेते पाकिस्तानी विचारधारा के लोग इंडियन मुजाहिदीन की हिमायत करते  हैं । उनके मानवाधिकारों की बात करते हैं।
संसद सदस्य मोहमद अदीब साहब जिन अमरीकी हिन्दुस्तानियों से मिल रहें हैं कहीं वह उनकी तरह के चौदवहीं शती की जहनियत वाले तआस्सउबी लोग तो नहीं हैं ?

तआस्सउबी -नस्ली और खानदानी पक्षपाती ,बे -जा (अनुचित )तरफ दारी करने वाला ,धार्मिक 

पक्षपाती कहलाता है । 

ये कहीं वैसे सेकुलर तो नहीं हैं जो मिनिस्टर होते हुए विरोधी को कहते हैं :मेरे शहर में आके देखना 

,वापस कैसे जाते हो देखूंगा। ये वो सेकुलर तो नहीं जो संयुक्त राष्ट्र संघ में जाकर अपने देश के

प्रतिवेदन के बजाय दूसरे  देश का 

प्रतिवेदन पढ़ने लगते हैं। ये कहीं वैसा  सेकुलर  होने की बात तो नहीं है जो विरोधी पर बुलडोज़र चलाने 

की धमकी देता है ,ऐसे सेकुलर चारा तो खा सकते हैं, बुलडोज़र बीच में कहाँ से ले आये। ये कहीं ऐसे 

सेकुलर तो नहीं हैं जो विरोधी का मनोबल तोड़ने के लिए आतंकवादियों से हाथ मिलाते हैं। लोकतांत्रिक 

विरोधी का मनोबल तोड़ने के लिए आतंकवादियों से हाथ मिलाते हैं और परोक्ष रूप से वे आई. एस. 

आई. के दखल का रास्ता बनाते हैं। क्या अदीब साहब ये बताएँगे कि वे खुद कौन से सेकुलर हैं। सबके 

बारे में अगर उनको याद न रहे तो महज़ इतना ही बतादें कि वह मज़हबी सेकुलर हैं या फिर जातिवादी 

या फिर जेहादी।  





सभी अमेरिकी हिन्दुस्तानियों का कहना था कि नरेंद्र मोदी इस लायक नहीं हैं की उन्हें हिंदुस्तान का वजीरे आलम बनाया जाए यह बात अमेरिका में एक जलसे को खिताब करते हुए  संसद सदस्य मोहम्मद अदीब से हिंदुस्तानी अमेरिकियों ने कहा।
भाजपा से वजीर-ए-आजम के उम्मीदवार व गुजरात ले वजीरे आला नरेंद्र मोदी के खिलाफ मजबूती से आवाज बुलंद करने वाले संसद सदस्य मोहम्मद अदीब ने अमेरिका में रहने वाले हिन्दुस्तानियों से खिताब करते हुए उन्हें यकीन दिलाया कि हिंदुस्तान एक सेक्युलर और जम्हूरी मुल्क है।  जहाँ फिरका परस्तों के लिए कोई जगह नहीं है. लिहाजा हम हिंदुस्तान के सेक्युलर अवाम कि तरफ से यह यकीन दिलाते हैं कि 2014 में नरेंद्र मोदी को शिकस्त होगी और मुल्क में सेक्युलर नजरिये की हुकूमत कायम होगी। ख्याल रहे कि मोहम्मद अदीब 20 अक्टूबर से 15 दिनों के लिए अमेरिकी दौरे पर हैं। और वह 5 नवंबर को वतन वापस लौटेंगे वह हिंदुस्तानी नुमाइंदे की हैसियत से संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल असेंबली में शिरकत के लिए गए हैं।
जनरल असेंबली के अपने खिताब में क्यूबा के ऊपर लगायी गयी पाबन्दी का पुरजोर मुतालबा किया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के अलावा कई बड़े जलसों में शिरकत की और उन्होंने कहा कि अमेरिका में रहने वाले हिन्दुस्तानियों को इस बात की फ़िक्र हैं कि नरेंद्र मोदी जैसे शख्स को हिंदुस्तान की जिम्मेदारी सौंप दी गयी तो इस सेक्युलर मुल्क का क्या होगा। उन्होंने कहा कि अमेरिकी हिन्दुस्तानियों का यह मानना है कि सेक्युलर नजरिया रखने वाले लोगों को बहुत सोच समझ कर फैसला करना चाहिए।
 संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल असेंबली से मुखातिब हुए उन्होंने कहा कि क्यूबा पर अमेरिका ने ईरान कि ही तर्ज पर गुजिस्ता 21 वर्षों से आर्थिक पाबन्दी लगा राखी है जिसकी वजह से वहाँ कि अर्थ व्यवस्था के हालात बदतर हैं। अदीब ने कहा की अमेरिका कि तरफ से आयत की गयी पाबन्दी बेबुनियाद  व गलत है लिहाजा उसे ख़त्म किया जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ के खिताब के बाद उन्होंने अमेरिकी हिन्दुस्तानियों के जरिये डेल्स मुशिगन व नॉर्थ रेले में कई जलसों को खिताब किया। इसी क्रम में न्यू जर्सी व बाल्टीमोर में कई जलसों में भी    शिरकत की।संदर्भ सामिग्री http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2013/11/blog-post_3.html

Posted  by 

स्रोत्र :
इंक़लाब

5 टिप्‍पणियां:

  1. बापू होते खेत इत, भारत चाचा खेत |
    सेत-मेत में पा गए, वंशावली समेत |

    वंशावली समेत, समेंटे सत्ता सारी |
    मद कुल पर छा जाय, पाय के कुल-मुख्तारी |

    "ताल-कटोरा" आय, लगाते घोंघे गोते |
    धोते "रविकर" पाप, आज गर बापू होते -

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सोने की चिड़िया मरे, रही फड़फड़ा पंख |
      घोंघे तो संतुष्ट हैं, मुतमईन है शंख |

      मुतमईन है शंख, जोर से चले बजाते |
      ले घंटा-घड़ियाल, झूठ को सत्य बनाते |

      रखें ताक़ पर बुद्धि, चले ये काँटा बोने |
      देते ये झकझोर, हमें ना देंगे सोने ||

      हटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (05-11-2013) भइया तुम्हारी हो लम्बी उमर : चर्चामंच 1420 पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    दीपावली के पंचपर्वों की शृंखला में
    भइया दूज की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. ये सेकुलर सरकार किस चिड़िया का नाम है ?

    वह जो कोयला चुगती है। चारा खाती है। जिसके कई चहेते पाकिस्तानी विचारधारा के लोग इंडियन मुजाहिदीन की हिमायत करते हैं । उनके मानवाधिकारों की बात करते हैं।
    संसद सदस्य मोहमद अदीब साहब जिन अमरीकी हिन्दुस्तानियों से मिल रहें हैं कहीं वह उनकी तरह के चौदवहीं शती की जहनियत वाले तआस्सउबी लोग तो नहीं हैं ?

    तआस्सउबी -नस्ली और खानदानी पक्षपाती ,बे -जा (अनुचित )तरफ दारी करने वाला ,धार्मिक

    पक्षपाती कहलाता है ।

    ये कहीं वैसे सेकुलर तो नहीं हैं जो मिनिस्टर होते हुए विरोधी को कहते हैं :मेरे शहर में आके देखना

    ,वापस कैसे जाते हो देखूंगा। ये वो सेकुलर तो नहीं जो संयुक्त राष्ट्र संघ में जाकर अपने देश के

    प्रतिवेदन के बजाय दूसरे देश का

    प्रतिवेदन पढ़ने लगते हैं। ये कहीं वैसा सेकुलर होने की बात तो नहीं है जो विरोधी पर बुलडोज़र चलाने

    की धमकी देता है ,ऐसे सेकुलर चारा तो खा सकते हैं, बुलडोज़र बीच में कहाँ से ले आये। ये कहीं ऐसे

    सेकुलर तो नहीं हैं जो विरोधी का मनोबल तोड़ने के लिए आतंकवादियों से हाथ मिलाते हैं। लोकतांत्रिक

    विरोधी का मनोबल तोड़ने के लिए आतंकवादियों से हाथ मिलाते हैं और परोक्ष रूप से वे आई. एस.

    आई. के दखल का रास्ता बनाते हैं। क्या अदीब साहब ये बताएँगे कि वे खुद कौन से सेकुलर हैं। सबके

    बारे में अगर उनको याद न रहे तो महज़ इतना ही बतादें कि वह मज़हबी सेकुलर हैं या फिर जातिवादी

    या फिर जेहादी।

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