गुरु और चेले में अनमेल
देश की वर्त्तमान (कोंग्रेस )राजनीति का यह दुर्भाग्य है गुरु अति शातिर है
और चेला मंद बुद्धि है। अब विज्ञान भले जितनी तरक्की कर ले मंगल पे
बस्ती बना ले मंद बुद्धि को कुशाग्र वह नहीं बना सकता।
देश के हित में यही होगा गुरु देश विरोधी चालें चलनी बंद करे। और चेला
अपना गुरु बदल ले। गुरु दुर्मुख भोपाली बाज़ीगर चेला मंद बुद्धि विन्ची ।
गोस्वामी तुलसी दास कहते हैं :
मूर्ख हृदय न चेत ,जदपि गुरु विरंचि सम
तात्पर्य यह है चाहे ब्रह्मा (विरंचि )जैसा गुरु क्यों न मिल जाए ,मूर्ख के
हृदय में
कोई प्रकाश नहीं होता।राजनीति के विन्ची -चिरकुमार, चिरकालीनछात्र
तो बने रहेंगे राजनीति के सुब्रामणियम स्वामी (प्रोफ़ेसर )कभी नहीं बन
पाएंगे।
कांग्रेस की राजनीति के सन्दर्भ में -यहाँ गुरु दुर्मुख ही नहीं है ,ज़रुरत से
ज्यादा शातिर भी है। चेला ,मंद बुद्धि है। इसलिए दोनों के हित में यही है
गुरु
कोई और शिष्य ढूंढ ले और चेला कोई और गुरु। कांग्रेस को इसी से
निस्तार मिल सकता है। वरना गुरु को अपयश मिलेगा चेले को हार।
आप बैल को हाथी नहीं बना सकते। हाथी की ताकत और समझदारी के
समकक्ष बैल कुछ भी नहीं है।
वर्त्तमान "गुरु "बोले तो खुद को कांग्रेस का चाणक्य समझने वाला
भोपाली मदारी ,तो देश की राजनीति पे छा चुके सूर्य को ,बी जे पी के लिए
ही
ख़तरा बता रहा है। पुराना रोग है कोंग्रेस का अस्वीकार की मुद्रा में रहना।
यह राजनीतिक आत्म वंचना नहीं है तो और क्या है ?
देश की वर्त्तमान (कोंग्रेस )राजनीति का यह दुर्भाग्य है गुरु अति शातिर है
और चेला मंद बुद्धि है। अब विज्ञान भले जितनी तरक्की कर ले मंगल पे
बस्ती बना ले मंद बुद्धि को कुशाग्र वह नहीं बना सकता।
देश के हित में यही होगा गुरु देश विरोधी चालें चलनी बंद करे। और चेला
अपना गुरु बदल ले। गुरु दुर्मुख भोपाली बाज़ीगर चेला मंद बुद्धि विन्ची ।
गोस्वामी तुलसी दास कहते हैं :
मूर्ख हृदय न चेत ,जदपि गुरु विरंचि सम
तात्पर्य यह है चाहे ब्रह्मा (विरंचि )जैसा गुरु क्यों न मिल जाए ,मूर्ख के
हृदय में
कोई प्रकाश नहीं होता।राजनीति के विन्ची -चिरकुमार, चिरकालीनछात्र
तो बने रहेंगे राजनीति के सुब्रामणियम स्वामी (प्रोफ़ेसर )कभी नहीं बन
पाएंगे।
कांग्रेस की राजनीति के सन्दर्भ में -यहाँ गुरु दुर्मुख ही नहीं है ,ज़रुरत से
ज्यादा शातिर भी है। चेला ,मंद बुद्धि है। इसलिए दोनों के हित में यही है
गुरु
कोई और शिष्य ढूंढ ले और चेला कोई और गुरु। कांग्रेस को इसी से
निस्तार मिल सकता है। वरना गुरु को अपयश मिलेगा चेले को हार।
आप बैल को हाथी नहीं बना सकते। हाथी की ताकत और समझदारी के
समकक्ष बैल कुछ भी नहीं है।
वर्त्तमान "गुरु "बोले तो खुद को कांग्रेस का चाणक्य समझने वाला
भोपाली मदारी ,तो देश की राजनीति पे छा चुके सूर्य को ,बी जे पी के लिए
ही
ख़तरा बता रहा है। पुराना रोग है कोंग्रेस का अस्वीकार की मुद्रा में रहना।
यह राजनीतिक आत्म वंचना नहीं है तो और क्या है ?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार को (08-11-2013) "मेरा रूप" (चर्चा मंच 1423) "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'