प्रकृति
व्यापारीनही/खुदा कृति इंसाव्यापारी-पथिकअनजाना-595वी
इंसान परिवार समुदाय रिश्ते
नातों की सेवा करता हैं
जिसका प्रतिफल सम्मान व दिलों में स्थान चाहता हैं
पूर्वजों ने अनोखी देन पीढियों
हेतू समर्पण ईजाद की हैं
इंसान समर्पित हैं तब
वह पूज्यनीय सम्मानीय हैं
आयु रोग अर्थाभाव या किसी
कारण जब विवश होता हैं
उसकी स्थिति दीवाल पर लटके
छाया चित्र सी होती हैं
क्या ऐसा ही समर्पण व्यापार
इंसा से खुदा भी चाहता हैं?
क्या ऐसा समर्पण संतान से व्यापार हर पिता चाहता हैं?
क्या ऐसा समर्पण संतान
वृद्ध /अशक्त जनकों से चाहती ?
अब पति-पत्नी के मध्य
सबंधों ने यह नीति स्वीकारी हैं
पाया प्रकृति व्यापारी नही
पर खुदा कृति इंसा व्यापारी हैं
प्रकृति व खुद में यह अंतर
इंसान व्दारा फैली बीमारी हैं
पथिक अनजाना
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