पूछा
एक सज्जन ने मुझसे कि निगाहों में दुनिया का डान कौन
पहले तो मैं नसमझा फिर दिया ध्यान
तो बात मेरी समझ आई
सत्य हुक्मानुसार डान के जीवन में
मोहरे मरते मारते रह जाते हैं
डान की चरणस्तुति कर समझते जीवन
सवँर निखरता जा रहा हैं
माना सज्जन उन्होंने दुनिया के
संग्रहालय को खूब जाना परखाहैं
नही गर डान तो क्यों इतने स्मृति
महल बनाये व रोशन रहते हैं
गरीबों के घर रोशनी नही क्यों दानी
डान के महल खूब सजाते हैं
शायद हुक्म डान को भी यहाँ नही पर रंभा
उर्वशी स्थान पाते हैं
भोग से समाधि तक की शटल यहाँ से
चलती ऐसा लोग बताते हैं
पता हिलता हुक्म से प्यादों की किस्मत
में दर्ज सजायें चिन्तायेंहैं
मजे की बात खेलता वह अकेला कोशिशे
खेलने की मोहरे करते हैं
पथिक अनजाना
कैसी उलझन है !
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