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मंगलवार, 20 मई 2014

दुनिया का डान कौन--- पथिक अनजाना—607 वीं पोस्ट





पूछा एक सज्जन ने मुझसे कि निगाहों में दुनिया का डान कौन
पहले तो मैं नसमझा फिर दिया ध्यान तो बात मेरी समझ आई
सत्य हुक्मानुसार डान के जीवन में मोहरे मरते मारते रह जाते हैं
डान की चरणस्तुति कर समझते जीवन सवँर निखरता जा रहा हैं
माना सज्जन उन्होंने दुनिया के संग्रहालय को खूब जाना परखाहैं
नही गर डान तो क्यों इतने स्मृति महल बनाये व रोशन रहते हैं
गरीबों के घर रोशनी नही क्यों दानी डान के महल खूब सजाते हैं
शायद हुक्म डान को भी यहाँ नही पर रंभा उर्वशी स्थान पाते हैं
भोग से समाधि तक की शटल यहाँ से चलती ऐसा लोग बताते हैं
पता हिलता हुक्म से प्यादों की किस्मत में दर्ज सजायें चिन्तायेंहैं
मजे की बात खेलता वह अकेला कोशिशे खेलने की मोहरे करते हैं

पथिक अनजाना

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