मोदी से सिरदर्द! इलाज है 'नमो बाम'
अहमदाबाद
बीजेपी के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता दूसरे दलों के नेताओं के लिए सिरदर्द की सबसे बड़ी वजह बन गई है। शायद यही वजह है कि मोदी ब्रैंड को भुनाने के लिए बनाए गए 'नमो बाम' की बिक्री की रफ्तार काफी तेज हो गई है।
'नमो बाम', नमो स्टोर के उन 20 नमो प्रॉडक्ट्स में से एक है, जिसकी बिक्री इतनी ज्यादा है कि वह आउट ऑफ स्टॉक हो गया है। 'नमो बाम' अदरक से बना एक आयुर्वेदिक बाम है, जिसे सिर और शरीद दर्द में राहत देने के लिए बनाया गया है।
नमो स्टोर के एक वॉलनटिअर प्रगनेंद्र ने बताया कि एक महीने के अंदर 'नमो बाम' की 10 हजार यूनिट बेची जा चुकी हैं। अभी भी 35 हजार यूनिट का ऑर्डर पेंडिंग पड़ा हुआ है। प्रगनेंद्र ने बताया कि 'नमो बाम' को 12 राज्यों में लॉन्च किया गया है।
हालांकि, 'नमो बाम' की तेजी से बढ़ती बिक्री के पीछे इसकी कीमत भी है। एक नमो बाम की कीमत 24 रुपए रखी गई, जबकि इसके जैसे दूसरे आयुर्वेदिक बाम की कीमत (करीब 30 से 35 रुपए) इससे ज्यादा है।
बाजार में हिट है मोदी ब्रैंड
बाजार में हिट है मोदी ब्रैंड
'नमो बाम' ही नहीं बल्कि मोदी ब्रैंड से जुड़े सारे प्रॉडक्ट्स बाजार में हिट हैं। 'नमो बाम' बनाने वाली कंपनी गोरान फ़ार्मासूटिकल है। स्टोर मैनेजर्स का कहना है कि चुनाव के बाद 'नमो बाम' को एक ब्रैंड के रूप में मेडिकल स्टोर के सहारे बेचने की तैयारी है।
इसके अलावा वडोदरा में एक हफ्ते पहले 'नमो टी' (नमो चाय) लॉन्च की गई है। मोदी ने अपने इलेक्शन कैंपेन में खुद को लगातार एक चाय वाला के तौर पर पेश किया है। ऐसे में कोई अचरज की बात नहीं होगी कि 'नमो टी' भी मार्केट में हिट हो जाए।
'नमो टी' के लिए चाय असम से मंगाई जा रही है और मोदी के समर्थक इसकी पैकिंग कर रहे हैं। नमो ब्रैंड के वॉलनटिअर्स का दावा है कि अबतक एक लाख किलो 'नमो टी' बेची जा चुकी है और 50 हजार किलो 'नमो टी' के ऑर्डर पेंडिंग हैं। अब 'नमो बाम' हो या 'नमो टी', भारत में दोनों ही सिर दर्द के मर्ज का इलाज माने जाते हैं।
नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे या नहीं, यह तो 16 मई को तय होगा, लेकिन यह जरूर है कि मोदी के नाम ने कई सारे ब्रैंड लॉन्च कर दिए हैं। इसकी एक और बानगी है हाफ-स्लीव वाला 'मोदी कुर्ता'। इसे भी एक लोकल गार्मेंट कंपनी ने लेबल ब्रैंड के रूप में रजिस्टर करा लिया है।
कतरनें अखबारों की
प्रियंकागांधी का अपने भाई की हिमायत में चुनावअभियान में उतारना भले हताश कांग्रेसियों में नै जान फूंक गया है लेकिन इससे उनके भाई राहुल गांधी को कुलमिलाकर कुछ फायदा भी हुआ है यह मान लेने से सहमत होना मुश्किल है। भले अपने नेहरू -गांधी परिवार को संसद भेजने वाले नगरों में कांग्रेस को कुछ फायदा हो जाए लेकिन अन्यत्र इसका बड़ा खामियाज़ा कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है।
उनके चुनाव अभियान में उतरने से राहुल पहले से भी ज्यादा प्रभाहीन लगने लगे हैं। अभी हाल फिलाल उन्होंने अपनी एक चुनाव सभा में कहा था -यदि मोदी प्रधानमन्त्री बन गए तो बाईस हज़ार आदमी मारे जाएंगे। उनसे न सही उनका भाषण लिखने वाले से पूछा जाना चाहिए -२२ हज़ार ही क्यों कम या ज्यादा क्यों नहीं। कहाँ और क्यों मारे जाएंगे भैया राजा इस बारे में भी कुछ नहीं बतलाते। क्या ये आंकड़ा मुज़्ज़फरनगर में उनके द्वारा दिए गए उस वक्तव्य की तरह नहीं है कि वहां आईएसआई के एजेंट छिपे हुए हैं।
एक और मर्तबा ज़नाब ने बतलाया -गुजरात में २७ करोड़ नौजवान बे -रोज़गार हैं। उन्हें और उनके भाषण लिखने वाले को शायद नहीं मालूम इतनी आबादी तो देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और गुजरात की कुल मिलाकर भी नहीं हैं।ज़ाहिर है उनके भाषण लिखने वाले को ये भी शायद मालूम नहीं था कि गुजरात की कुल आबादी छ :करोड़ के आसपास है। राहुल गांधी ये बतलाएं कि वे २१ करोड़ की और आबादी कहाँ से ले आए ?और वह भी सारे युवा। वो अपनी गलती को बार बार दोहराते हैं इतना तो दूसरी कक्षा का बच्चा भी नहीं करता वह भी उत्तीर्ण होने पर पहली कक्षा के पाठ को भूल जाता।
बेहतर होता प्रियंका गांधी अपने भाई को थोड़ा सा इतिहास और भूगोल पढ़ा देतीं।
भारत की राजनीति को नेहरू -गांधी परिवार के प्रिज़्म से देखने की बजाय अभिव्यक्ति के कुछ सु -स्पस्ट आयाम रचतीं। फिलवक्त तो कांग्रेस का चुनावी अभियान बे -मेल ,अ -संगत और अ -सम्बद्ध है।
किस ब्रांड की मार्किटिंग की जाए इसे लेकर ही असमंजस है।
अप्रेल में चुनाव अभियान की शुरुआत में सवाल था -क्या मोदी प्रधानमन्त्री बन सकते हैं अब सवाल है मोदी को कैसे रोका जाए।
या तो आज आप मोदी के पक्ष में खड़े हैं या फिर असमंजस की स्थिति में हैं।
हाँ कांग्रेसियों को इतनी तसल्ली भाई बहन की ये जोड़ी ज़रूर दे सकती है नेहरू -गांधी की विरासत को ये जोड़ी कालशेष नहीं होने देगी।
जरूरी बाम !
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