जाने क्यों जमाने
की सोच सदैव अलग रही हैं
हमारे प्रति तो रवैया सदा
ही विपरित रहा हैं
अन्य तरीकों से तो कभी होती
पूंछ सीधी नही
अक्ल नही मौके कीतलाश
चापलूसी काम की हैं
शायद वे भारी भूल में हैं
जो अतिविश्वास भरे
परचम लहराते देखते तमाशा
उनके खैरख्वाह हैं
पछताते हैं व साथी लोग सिर धुनते रह जाते हैं
पथिकअनजाना
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