अजय माकन जी जिस नेहरू -इंदिरा कांग्रेस की तरफदारी कर रहे हैं जो अब सोनिया कांग्रेस बनके रह गई है
उसकी बौद्धिक क्षमता के बारे में भी उन्हें पता होना चाहिए। भारत की परम्परा का भी उन्हें इल्म होना चाहिए।
भारतीय चिंतन धारा में स्वाध्याय का बड़ा महत्व रहा है।जबकि इंडिया की परम्परा डिग्री हासिल करने की
रही है। भारत की परम्परा धरती पुत्र वल्लभभाई पटेल से जुड़ी थी। लालालाजपत राय से जुड़ी थी। इंडिया का
प्रतिनिधित्व नेहरू करते थे जो योरोप की बात करते थे। जिस बेटी को उन्होंने पत्र लिखे थे -पिता के पत्र पुत्री
के नाम उस बेटी के पास स्वाध्याय की परम्परा नहीं थी और डिग्री वे चाह कर भी प्राप्त न कर सकी।पत्रों का
अर्थ उनकी समझ सा बाहर था।
न ही वे पत्र भारत की चिंतन धारा का प्रतिनिधिक दस्तावेज़ थे। योरोप की जूठन मात्र थे।
कश्मीर के मामलात विदेश मंत्री बनके नेहरूजी ने अपने हाथ में ले लिए थे। पटेल के हाथ में होते तो आज
कश्मीर एक लाइलाज फोड़े के रूप में ज़िक्र न होता।धारा ३७० से हम सिर न फोड़ रहे होते।
आज माकन जी स्मृति ईरानी के शैक्षिक स्तर पर सवाल उठा रहे हैं। थोड़ा सा बस थोड़ा सा हिंदी साहित्य का
इतिहास ही पढ़ लें ,पता चलेगा आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जैसे आचार्य स्वाध्याय से ही आगे बढे थे ,मात्र बारहवीं
पास थे (इंटरमीडिएट आर्ट्स ) लेकिन स्वाध्याय के बलपर बनारसहिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर (आचार्य
)एवं विभागाध्यक्ष के पद से नवाज़े गए। हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी भी विधिवत डिग्री धारी नहीं थे ,ले देके मात्र बीए थे लेकिन पंजाब
विश्वविद्यालय ,चंडीगढ़ के हिंदी विभाग के आचार्य बनाये गए। कबीर -तुलसी सभी स्वाध्याय की हमारी
समृद्ध
परम्परा से पोषित थे।
इंदिराजी ग्यारहवीं पास थीं ।डिग्री प्राप्त करने की बौद्धिक क्षमता उनके पास न थीं। बारहवीं के लिए भर्ती की
ऑक्सफोर्ड परीक्षा में तीन मर्तबा अन -उत्तीर्ण हुई।
लेकिन एक ताकतवर कामयाब प्रधानमन्त्त्री साबित हुईं।
उसकी बौद्धिक क्षमता के बारे में भी उन्हें पता होना चाहिए। भारत की परम्परा का भी उन्हें इल्म होना चाहिए।
भारतीय चिंतन धारा में स्वाध्याय का बड़ा महत्व रहा है।जबकि इंडिया की परम्परा डिग्री हासिल करने की
रही है। भारत की परम्परा धरती पुत्र वल्लभभाई पटेल से जुड़ी थी। लालालाजपत राय से जुड़ी थी। इंडिया का
प्रतिनिधित्व नेहरू करते थे जो योरोप की बात करते थे। जिस बेटी को उन्होंने पत्र लिखे थे -पिता के पत्र पुत्री
के नाम उस बेटी के पास स्वाध्याय की परम्परा नहीं थी और डिग्री वे चाह कर भी प्राप्त न कर सकी।पत्रों का
अर्थ उनकी समझ सा बाहर था।
न ही वे पत्र भारत की चिंतन धारा का प्रतिनिधिक दस्तावेज़ थे। योरोप की जूठन मात्र थे।
कश्मीर के मामलात विदेश मंत्री बनके नेहरूजी ने अपने हाथ में ले लिए थे। पटेल के हाथ में होते तो आज
कश्मीर एक लाइलाज फोड़े के रूप में ज़िक्र न होता।धारा ३७० से हम सिर न फोड़ रहे होते।
आज माकन जी स्मृति ईरानी के शैक्षिक स्तर पर सवाल उठा रहे हैं। थोड़ा सा बस थोड़ा सा हिंदी साहित्य का
इतिहास ही पढ़ लें ,पता चलेगा आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जैसे आचार्य स्वाध्याय से ही आगे बढे थे ,मात्र बारहवीं
पास थे (इंटरमीडिएट आर्ट्स ) लेकिन स्वाध्याय के बलपर बनारसहिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर (आचार्य
)एवं विभागाध्यक्ष के पद से नवाज़े गए। हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी भी विधिवत डिग्री धारी नहीं थे ,ले देके मात्र बीए थे लेकिन पंजाब
विश्वविद्यालय ,चंडीगढ़ के हिंदी विभाग के आचार्य बनाये गए। कबीर -तुलसी सभी स्वाध्याय की हमारी
समृद्ध
परम्परा से पोषित थे।
इंदिराजी ग्यारहवीं पास थीं ।डिग्री प्राप्त करने की बौद्धिक क्षमता उनके पास न थीं। बारहवीं के लिए भर्ती की
ऑक्सफोर्ड परीक्षा में तीन मर्तबा अन -उत्तीर्ण हुई।
लेकिन एक ताकतवर कामयाब प्रधानमन्त्त्री साबित हुईं।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (31-05-2014) को "पीर पिघलती है" (चर्चा मंच-1629) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
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