खोजता रहता कोई जिन्दगी जिसे दुनिया जिन्दगी कहती हैं
साठ साल का वक्त गुजरा जाता
खोजता वो जिन्दगी हैं कहाँ
जिन्दगी की दी परिभाषा दिल
के ख्यालौं में दर्ज छाई खुश्बू हैं
मानो नरक में गुजरता वक्त
उलझनों वो राह कहीं न पा सका
छोड सारी आशायें अब वह
अन्नत आकाश को निहारता रहता
प्रकृति अपनों को क्या दुश्मन को भी न ऐसी सजा कभी देना
किसी को नही मालुम कोई अन्य
दुनिया भी यही कही बसतीहैं
चाहता वह हो आयु अब समाप्त
यही इलतिजा रब से करता हैं
हालात कहते क्यों बनाता इंसा
ऐसे इंसान के लिये जिन्दगी में
कैसे मानेगा कोई यह कि
ज्ञान की गंगा जीव इंसा में बहती हैं
पथिक अनजाना
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