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बुधवार, 14 मई 2014

शांति की कब्र पर ये शांत—पथिक अनजाना -601वी.पोस्ट







जीवन में गैरों से जंग समयाधीन होती हैं
अपनों से जंग ही क्यों ताउम्र चला करती हैं
मुझे गैरों से जंग करके ज्यादा दुख न हुआ
दुखी तो अपनों से चलती जंग  ने कर दिया
जंग उनके साथ जो सदैव जीवन में साथ हो
वजह जंग की बेवकूफी भरे कार्य क्यों होते हैं
माना इक राहे बेवकूफी दूजा सब्र करता नही
होते मैदाने जंग में तालियाँ तमाशबीन बजाते
विदूषक बनाने वाले यहाँ खुद विदूषक हो जाते
अपनी शांति की कब्र पर ये शांत कैसे हो जाते
ताउम्र इसमें गवाँते शांति नही आमीन होती हैं
अपनों से जंग नही कभी  समयाधीन होती हैं
पथिक   अनजाना


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