शासन का मशविरा --- पथिक अनजाना
जाने वक्त कैसा
आगया या भूले से मैं यहाँ आ गया
शासन मशविरा देता
अब प्रकाशकों व उदघोषकों को
स्थान नहीं दो
न्यायपालिका व शासन विरूढ रोष को
आखें
खुली, कान खुले जुबान बन्द व लिखना मना हैं
तमाशबीनों से भरी दुनिया में खुदा भी हुआ अनबना
हैं
चन्द सिरमौर्य जय-योग्य , शेष सुलझे लोग रोग हैं
संघर्षशील नई पौध
की रचनायें होती गैरों के भोग हैं
भावार्थ न समझे जनहित
न समझें कहलाते योग्य हैं
पथिक अनजाना
http://pathic64.blogspot.com
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