कांग्रेस के लोकसभा चुनाव हारने की आशंका: मणि शंकर अय्यर
मणि शंकर अय्यर
वरिष्ठ कांग्रेस नेता
हाल में चार राज्यों में विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद अब अगर कांग्रेस अगले साल आम चुनाव भी हार जाती है तो मुझे लगता है कि राहुल गांधी के पास पार्टी में आमूलचूल परिवर्तन लाने का सुनहरा मौक़ा होगा.
मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि हम अगले साल आम चुनाव में हारेंगे. मैं यह भी नहीं चाहता हूँ कि हम हारें. मुझे तो बस हार की आशंका है.
अगर हम हार भी गए तो इसका मतलब यह नहीं कि क्लिक करेंकांग्रेस पार्टी का बेड़ा गर्क हो जाएगा. पहले भी इतिहास में हम बार-बार हारे हैं और पुनर्जीवित हुए हैं.
क़रीब 30 साल पहले राजीव गांधी ने कांग्रेस में एक बहुत बड़े परिवर्तन की ज़रूरत महसूस की थी. जब उन्होंने कहा था कि सत्ता के दलालों को पार्टी से हटाना है.
उसके बाद कांग्रेस के बड़े नेता उमा शंकर दीक्षित को यह ज़िम्मेदारी दी गयी कि वो एक रिपोर्ट तैयार करें जिसमें भविष्य में पार्टी को आने वाली चुनौतियों का सामना करने के सुझाव हों.
उनकी सिफ़ारिशें आईं और उन्हें पार्टी ने स्वीकृति दे दी. चूंकि हम चुनाव जीत जाते हैं इसलिए जो सिफ़ारिशें बदलाव लाने के लिए मंज़ूर की गई थीं, उन्हें अमल में नहीं लाया गया.
पार्टी में बदलाव ज़रूरी
पार्टी में परिवर्तन के लिए तीन मुख्य सुझाव हैं जो हमारे पास एक अर्से से हैं और जिसका फ़ायदा अब हमें उठाने की ज़रूरत है.
पहला यह कि जो चुने हुए प्रतिनिधि हैं उन्हें पार्टी अपना आधार बनाए. नीचे से लेकर बिल्कुल शिखर तक पार्टी के हर पद पर चुनाव हो. इससे हर मेंबर को एक तरह की भागीदारी का अहसास होगा कि मैं इस पार्टी में हूँ.
दूसरा सुझाव है कि लोकसभा के उम्मीदवारों का ऐलान हमें कम से कम छह महीने पहले और विधानसभा के उम्मीदवारों का कम से कम तीन महीने पहले कर देना चाहिए.
इससे उम्मीदवारों को दिल्ली आकर गणेश परिक्रमा करने के बजाए अपने क्षेत्र में काम करने का मौक़ा मिलेगा.
धर्मनिरपेक्षता बुनियादी उसूल
और तीसरा सुझाव है कि जिस मशीनरी को 20वीं सदी के लिए तैयार किया गया था उसको 21वीं सदी के लिए तैयार करना है ताकि परंपरा के अनुसार पार्टी का पहला नंबर क़ायम रहे.
धर्मनिरपेक्षता कांग्रेस पार्टी का बुनियादी उसूल है. हमारी पार्टी समझती है कि विविधता के आधार पर ही क्लिक करेंहम इस देश की एकताको कायम रख सकते हैं.
नरेंद्र क्लिक करेंमोदी का मुक़ाबला पार्टी किस तरह से कर रही है, इसका बहुत ज़्यादा अंदाजा मुझे नहीं है.
मुझे कांग्रेस से बिल्कुल अलग किया जा रहा है. संसदीय समिति में तो मैं हूँ लेकिन ये नहीं कहा जा सकता कि मैं वार रूम में बैठा हूँ या अहमद पटेल के पैर पर मैं बैठा हूँ. ऐसा कुछ नहीं है. मुझे एक तरफ़ कर दिया गया है.
मोदी से मुक़ाबला
क्लिक करेंमोदी से मुक़ाबला करने के लिए हमें जनता के बीच जाकर यह संदेश देना है कि देश की एकता पर एक बड़ा ख़तरा है उन लोगों से जो कि कहते हैं कि ये एक हिन्दू देश है वो मात्र 85 फीसदी हिंदुस्तानी हैं मैं तो 100 प्रतिशत हिंदुस्तानी हूँ.
मुझे अफ़सोस है कि जब हम गुजरात के चुनाव में जाते हैं तो हम ने यह तीन बार देखा है कि कांग्रेसियों में ही अंदर की एक झिझक है, सेक्यूलरिज़्म शब्द इस्तेमाल करने में. वो कहते हैं अरे भाई सेक्यूलरिज़्म का शब्द मत इस्तेमाल कीजिए क्योंकि इससे हिन्दू नाराज़ हो जाएंगे.
ऐसी सोच में अगर हम पड़ गए तो हार लाज़मी है. अगर सांप्रदायिकता के आधार पर सियासत करना हो तो हम से तो बहुत बेहतर हैं मोदी. वही जीतेंगे.
सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ हम लड़ें और बेझिझक लड़ें. इससे एक बार हम हार सकते हैं, लेकिन आगे भारत को बचाने के लिए इस सेक्यूलरिज़्म को ज़िंदा रखना अनिवार्य है.
(बीबीसी संवाददाता ज़ुबैर अहमद से बातचीत पर आधारित)
ye hoga vah hoga iska karmsheel log chintan nahi karte ve keval karm karte hain fal prabhu par nirbhar hai .
जवाब देंहटाएंसमाचार देते रहना भी एक साहित्य-सेवा ही है !
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