श्री राम की कीमत -- ( 432 )
हर परिवारिक
किले की चाहरदिवारी
में क्यों नापाक कुचालें चली जाती हैँ
छीन जिन्दगी से सकून ताकतवरों व्दारा
कहते
बुजुर्गों के
लिये कुछ भी नही हैँ
जाने
कैसे हर युग में हर समाज,देश की
हर परत
में यह अंकुरित हो जाती हैँ
कुचाले चाले जो होते अपने वे अपनों
से
अपनों
हेतू पर जीत शैतानियत जाती हैँ
यादों
में इतिहास में हो दर्ज इस तरह
जाने यह अपने क्या सकून अपनाते हैं
न कर्मों पर ,शर्मों पर फैसले निहित हैं
हद हुई फिर भी होते महान चिन्हित हैं
वैतरणी पार हेतू रावण को अडना पडा
राम से जुडने हेतू रावण को बनना पडा
कही कहते राम की कीमत रावण से होती
इंसानियत रणक्षेत्र ऐसा जहाँ चालें मोती हैं
पथिक अनजाना
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (28-12-13) को "जिन पे असर नहीं होता" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1475 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'