व्यवहारों
का हिसाब
जिसमें
विभिन्न पहलू विद्यमान हैं
संघर्ष
भी हर्ष भी आबादी व बर्बादी
भी
क्षोभ व रौब भी मोह विछोह भी
कलकल छल व बल भी गहरी सांसें
व टूटी आसें भी चीखें व सीखें भी हैं
उतार
चढाव दलदल दरियाव भी टूटती
कही
रूठती कही खाई तो पहाड भी
प्रभात
जीवन का क्यों फिर होता सपन
व्यवहारों
का हिसाब क्यों होता हैं
यह
मिथ्या जीवन अगर सपना है एंव
कब्रिस्तानी
अदालत में रूह खडी हैं
किया
कराया बताया दिखाया छोडा
व
तूने यहाँ पाया क्या हिसाब नही हैं
बातों
में फंस क्रोध मान लोभ अंह व
वासना
में बहाया क्या हैं जवाब नहीं
पथिक
अनजाना
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंलेकिन यहाँ पर 420वीं पोस्ट नहीं हैं।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (20-12-13) को "पहाड़ों का मौसम" (चर्चा मंच:अंक-1467) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'