अकुला रही सारी मही
किसको पुकारना है सही ।
सोच रही अब वसुंधरा
कैसा कलुषित समय पड़ा
बालक बूढ़े नौजवान
गिरिवर तरुवर आसमान
किसको पुकारना .........
अखंड भारत सपना
देखा था ये अपना
खंडित हो कर बिखर रहा
न जन मानस को अखर रहा
अकुला रही
.................
ढूँढने
पर भी अब मिलते
राम कृष्ण से पुरुषोत्तम नहीं
अर्जुन कर्ण गदाधर भीम
नहीं
भगत सुभाष से नायक नहीं
अकुला रही .............
रण बांकुरों से वसुंधरा
हर युग मे अल्हादित रही
किन्तु अहो ! क्या कोई
बचा अब बांका लाल नहीं
अकुला रही सारी मही
किसको पुकारना
............
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (04-12-2013) को कर लो पुनर्विचार, पुलिस नित मुंह की खाये- चर्चा मंच 1451
पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर रचना है।
जवाब देंहटाएं(आल्हादित )
रण बांकुरों से वसुंधरा
हर युग मे अल्हादित रही