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बुधवार, 18 दिसंबर 2013

ध्वजावरोहन समारोह वाघा बार्डर.. एक संस्मरण

दिन धीरे धीरे साँझ में ढल रहा था ,हमारी कार अमृतसर से लाहौर की तरफ बढ़ रही थी ,वाघा  के नजदीक बी एस एफ के हेडक्वाटर से  थोड़ी दूर आगे ही  दो बी एस एफ के जवानो ने हमारी कार को रोका ,मेरे पतिदेव गाडी से नीचे उतरे और उन्हें अपना आई कार्ड दिखाया और उनसे आगे जाने की अनुमति ली |आगे भी कड़ी सुरक्षा के चलते हम तीन चार बार अनुमति लेने के बाद वाघा  बार्डर पहुच गये | कार पार्किंग में ,छोड़ हम भारत पाक सीमा की ओर पैदल ही  बढने लगे| सूरज की तीखी धूप सामने से हमारे चेहरों पर पड़ रही थी ,उधर से लाउड स्पीकर पर जोशीला गाना ,''चक दे ,ओ चक दे इण्डिया ''हम सब की रगों में एक अजब सा जोश भर रहा था | जैसे ही हमने सीमा के प्रांगण में कदम रखा ,तो वहाँ कुछ नन्ही बच्चियां और कुछ नवयुवतियां उस जोशीले गाने पर थिरक कर अपना राष्ट्रीय प्रेम व्यक्त कर रही थी |एक बी एस एफ के जवान ने हमें उस प्रांगण की सबसे आगे वाली पंक्ति में बिठा दिया ,ठीक मेरी बायीं ओर भारत पाकिस्तान की सीमा दिखाई दे रही थी ,दोनों ओर के फाटक साफ़ नजर आ रहे थे और बीच में था कुछ खाली स्थान जिसे ,''नो मेन'स लेंड'' कहते है |फाटक के बाएं और दायें ओर बी एस एफ के जवान काले जूतों से ले कर लाल ऊँची पगड़ी तक पूरी यूनिफार्म में तैनात थे |सीमा के इस ओर भारत का तिरंगा लहरा रहा था और सीमा के दूसरी ओर पाकिस्तान का झंडा था |इस ओर का प्रांगण खचाखच  भारतवासियों से भरा हुआ था ,करीब आठ ,दस हजार लोग उस समारोह में शामिल थे   देश प्रेम के गीतों पर जोर जोर से तालियाँ बज रही थी और शायद उतने लोग सीमा पार ढोलक की थाप पर नाच रहे थे |पाकिस्तान के सीमा प्रहरी काली वेशभूषा में तैनात थे ,शाम के साढ़े पांच बज रहे थे ,समारोह की शुरुआत हुई भारत माता की जय से ,गूंज उठा सीमा का प्रांगण ,वन्देमातरम और हिन्दोस्तान की जय के नारों से ,कदम से कदम मिलाते हुए ,बी एस एफ की दो महिला प्रहरी काँधे पे रायफल लिए मार्च करती हुई सीमा के फाटक की ओर बढती चली गयी |एक ध्वनि लोगों को होशियार करती हुई ''आ आ .......अट'' के साथ कदम मिलाते हुए  दो जवान फाटक पर पाक सीमा की और मुख किये जोर से अपनी दायीं टांग सीधी उपर कर सर तक लेजाते हुए फिर उसे जोर से नीचे कर '' अट'' की आवाज़ के साथ पैर नीचे को पटक कर सलामी देते है |भारत माता ,वन्देमातरम और हिन्दोस्तान की जय जयकार के जोशीले  नारे लगातार हवा में गूंज रहे थे, यह पूरी प्रक्रिया तीन,चार बार दोहराई गयी  ,सीमा पार से लगातार ढोलक बजने की आवाज़ आ रही थी |शंखनाद के साथ  श्रीमद भगवत गीता का एक श्लोक ,''यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिरभवति भारत |अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृजाम्यहम || ''की लय पर भारतमाता के जवान प्रहरी कदम मिलाते हुए ,फाटक की ओर बढ़ते हुए उसे खोल दिया गया |,यही प्रक्रिया सीमा पार के प्रहरियों ने करते हुए अपनी ओर का फाटक पकिस्तान की जय जयकार करते हुए खोल दिया |रिट्रीट सैरिमोनी में दोनों ओर के सिपाहियों ने  ,अपने अपने देश के झंडों को सलामी देते हुए ,ध्वजावरोहन की प्रक्रिया शुरू की |दोनों ओर के दर्शकों की तालियों से वातावरण गूंज उठा |राष्ट्र प्रेम की भावना से ओतप्रोत वहा बैठा  हर भारतीय अपने दिल से जय जयकार के नारे लगा रहा था |राष्ट्रीय गान के साथ दर्शकों ने खड़े हो कर सम्मानपूर्वक ,बी एस एफ  के जवानो के साथ राष्ट्रीय ध्वज का अवरोहन किया| तालियों और नारों के मध्य दो जवानो ने सम्मानपूर्वक तिरंगे की तह को अपनी कलाइयो और हाथों पर रख कर सम्मान के साथ परेड करते हुए उसे वापिस लेते हुए चल पड़े |अन्य दो जवान मार्च करते हुए फाटक की तरफ बड़े और उसे बंद करने की प्रक्रिया शुरू हो गई |सूर्यास्त होने को था ,आसमान में आज़ाद पंछी सीमा के आरपार उड़ रहे थे ,लेकिन इस आधे घंटे की प्रक्रिया ने सीमा के इस पार हम सबके दिलों को राष्ट्रीय प्रेम के भावना से भर दिया और मै भावविभोर हो नम आँखों से वन्देमातरम का नारा लगते हुए बाहर की ओर चल  पड़ी |


रेखा जोशी 

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (19-12-13) को टेस्ट - दिल्ली और जोहांसबर्ग का ( चर्चा - 1466 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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