कान्हा तेरी वंसी मन तरसाए
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कण-कण ज्ञान का अमृत बरसे,
तन मन सरसाये |
ज्योति-दीप मन होय
प्रकाशित, तन जगमग कर जाए |
तीनलोक में गूंजे यह
ध्वनि, देव दनुज मुसकाये |
पत्ता-पत्ता, कलि-कलि झूमे,
पुष्प-पुष्प खिल जाए |
नर-नारी की बात कहूँ क्या,
सागर उफना जाए |
बैरन छेड़े तान अजानी ,
मोहनि मन्त्र चलाये |
राखहु श्याम’ मोरी मर्यादा,
मुरली मन भरमाये ||
सुअना नाम रटे का होई |
नाम धाम रटि
रटि कै
सुअना, पार भया ना कोई |
धन की बतियाँ कहत सुने ते, कौन धनी होइ जावै|
पानी पानी कहत रहै नित, प्यास कहाँ बुझि पावै |
का घड़ियाल बजाए होई , का परसाद चढ़ाए |
पुहुप पात भेंटे का होई, जो सत करम न भाए |
बिनु समुझे बूझे जाने बिनु, नाम रटे क्या होता |
माया ज्यों ही सम्मुख आवे, वही रटन्ता तोता |
राम रूप गुन धारै-परसै, सोइ गुन करम करै |
श्याम', श्याम महिमा चित धारे, सो भाव सिन्धु तरै ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (08-12-2013) को "जब तुम नही होते हो..." (चर्चा मंच : अंक-1455) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्रीजी .....
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार डाक्टर साहब
धन्यवाद रविकर....
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