कश्ती में चलने वाले समंदर का किनारा भी है
है फजां धुंंधलाई हुई पर मंजिल तुम्हारा भी है
रात है तो क्या हुआ सब उंघे नही हैं
खामोशियों में बजता दिलों का एकतारा भी है
गिर जाओ फिसल के तो हयात खत्म नही होती
यहां आदमी गिर-गिरकर सम्भलता दोबारा भी है
तारिकियों में ख्वाब होते है जवान यारों
अंधेरों में रोज फलक पे चमकता सितारा भी है
कुछ पल की खानाबदोशी चलो गंवारा सही
वो अर्श पर बैठा हुआ देता गुजारा भी है
है फजां धुंंधलाई हुई पर मंजिल तुम्हारा भी है
रात है तो क्या हुआ सब उंघे नही हैं
खामोशियों में बजता दिलों का एकतारा भी है
गिर जाओ फिसल के तो हयात खत्म नही होती
यहां आदमी गिर-गिरकर सम्भलता दोबारा भी है
तारिकियों में ख्वाब होते है जवान यारों
अंधेरों में रोज फलक पे चमकता सितारा भी है
कुछ पल की खानाबदोशी चलो गंवारा सही
वो अर्श पर बैठा हुआ देता गुजारा भी है
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