इस दुनिया का एक लघु
आकार दिखा
जिसमें जीवन का एक
बृहद व्यापार दिखा
सुलभ हुआ चाँद व मंगल
पर जाना भी
मनुओं से उत्पन्न
हुआ एक अदभूत औजार दिखा
इस धरती पर सब नश्वर
है चल अचल
फिर भी हर दिल में
हाय हाय आगार दिखा
जब भी मैने हँसता
खिलता चेहरा देखा तो
मन में झांका और गम
का एक भण्डार दिखा
जिनकी ही ऊँची कोठी
है संघ में ऊँचे दावे हैं
मानवता के बाजार में
लाया कौड़ी से बेकार दिखा
कल तक जो ढ़ोते थे
कंधों पर औरो को अपने
जब सुबह हुई तो आदम
अरथी ढ़ोता चार दिखा
एक खेवईया मिला था
इस घाट पे नाव चलाता
पर जब उस पार गया
तो ये माँझी उस पार दिखा
खुद को अगर बाजीगर
समझ ले कोई तो क्या है
मैने जब भी देखा सब
ईश्वर का खिलवाड़ दिखा
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