मित्रों!

आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं।

बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए।


फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 12 जून 2015

इस दुनिया का

इस दुनिया का एक लघु आकार दिखा
जिसमें जीवन का एक बृहद व्यापार दिखा
 
सुलभ हुआ चाँद व मंगल पर जाना भी
मनुओं से उत्पन्न हुआ एक अदभूत औजार दिखा
 
इस धरती पर सब नश्वर है चल अचल
फिर भी हर दिल में हाय हाय आगार दिखा
 
जब भी मैने हँसता खिलता चेहरा देखा तो
मन में झांका और गम का एक भण्डार दिखा
 
जिनकी ही ऊँची कोठी है संघ में ऊँचे दावे हैं
मानवता के बाजार में लाया कौड़ी से बेकार दिखा
 
कल तक जो ढ़ोते थे कंधों पर औरो को अपने
जब सुबह हुई तो आदम अरथी ढ़ोता चार दिखा
 
एक खेवईया मिला था इस घाट पे नाव चलाता
पर जब उस पार गया तो ये माँझी उस पार दिखा
 
खुद को अगर बाजीगर समझ ले कोई तो क्या है
मैने जब भी देखा सब ईश्वर का खिलवाड़ दिखा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें