वन्दे मातरम न कहने वालों से दो टूक
एक बार की बात है बादशाह अकबर के दरबार में एक फ़कीर आया। अकबर बादशाह के बारे में विख्यात है वह संत महात्माओं फ़कीर औलाओं का बड़ा सम्मान करता था। फ़कीर ने बादशाह को तीन बार सलाम किया बादशाह ने उसे सम्मान पूर्वक बिठलाया।
अकबर ने पूछा फ़कीर ये बतलाओ तुम्हारा ईश्वर करता क्या है मुझे तो लगता है वेला है कुछ नहीं करता ,कोई काम धाम नहीं है उसे करने को । फ़कीर बोला महाराज मैं इसका उत्तर थोड़ी देर में ज़रूर दूंगा। फ़कीर बोला प्रश्न करता सदैव नीचे बैठता है उत्तर देने वाले से। बादशाह ने बीरबल की ओर तिरछी नज़रों से देखा बीरबल बोला महाराज कोई बात नहीं फ़कीर ही तो है इसका सम्मान करना चाहिए।
बादशाह फ़कीर के स्थान पर आकर खड़ा हो गया। बोला अब उत्तर दो मेरे प्रश्न का। फ़कीर बोला भले आपने मुझे अपने आसन पर बिठला दिया लेकिन मुकुट तो अभी भी आपके सर पर ही है। अकबर को ये बात अच्छी न लगी उसने ने फिर बीरबल की ओर देखा। बीरबल ने फिर वही कहा फ़कीर ही तो है क्या फ़र्क पड़ता है कोई लेकर तो भाग नहीं जाएगा थोड़ी देर की ही तो बात है। अकबर ने राजमुकुट भी फ़कीर के सर पर रख दिया।
फ़कीर फिर बोला जब मैं आपके दरबार में आया था तो मैंने तीन बार आपको सलाम किया। आप भी ऐसा कीजिये। अकबर को ये ना -गंवार लगा उसने फिर बीरबल की ओर देखा बीरबल ने पुन : वही कहा महाराज फ़कीर ही तो है इसकी बात मान लो।आपको यदि अपने प्रश्न का उत्तर चाहिए तो ऐसा करने में हर्ज़ भी क्या है।
अकबर ने फ़कीर की तीन बार बंदगी भी की। फिर बोला महाराजज हमारा ईशवर यही करता है ऊपर वाले को नीचे कर देता है नीचे वाले को ऊपर। बादशाह को फ़कीर ,फ़कीर को बादशाह बना देता है। बड़े दिमाग का काम है।
आज इस्लाम की दुहाई देने वाला अल्लाह हू अकबर कहने वाला वन्देमातरम कहने में अपनी तौहीन समझता
है -
मज़हब को कुरआन को बीच में ले आता है फिर अल्लाह हू अकबर भी क्यों कहता है।अकबर को अकबर महान
भी क्यों कहता है।अकबर के बारे में ऐसे अनेक उद्धरण इतिहास में मौजूद हैं तानसेन के गुरु संत हरिदास से लेकर मीराबाई तक।
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