सब संस्कारों की बात है भैया -जैसा बीज वैसा फल। कुसंग का रंग जल्दी चढ़ता है उतरता देर से है। कुसंग एक पल का भी विश्वामित्र की तपस्या का भंग कर देता है। इसलिए तुलसी बाबा ने कहा-
एक घड़ी आधी घड़ी ,आधी की पुनि आध ,
तुलसी संगत साधु की ,काटे कोटि अपराध।
महाकवि तुलसी दास जी कहते हैं साधु पुरुष की संगत से हमारे अनंत कोटि जन्मों के अपराध नष्ट हो जाते हैं इसके बाद सिर्फ प्रारब्ध भोगना ही शेष रह जाता है व्यक्ति पूर्व जन्म के पापकर्मों के फल से यानी संचित कर्मों से मुक्त हो जाता है। अब करने को क्रियमाण कर्म (वह कर्म जो तुम अब कर रहे हो जिन्हें आगामी कर्म भी कहा जाता है क्योंकि इनका फल आगे के जन्मों में मिलता है )और प्रारब्श कर्मफल ही शेष रह जाता है।
एक घड़ी में चौबीस मिनिट बतलाये गए हैं . आधी में हुए बारह और आधी की भी आधी बोले तो हुए छ :मिनिट। सुसंग का रंग देर से चढ़ा न। और कुसंग तो एक पल का ही बहुत बुरा फल लाता है। घड़ी ,पल छिन सब सुसंग में जाए यही वर्णाश्रम व्यवस्था के छात्र धर्म का सही निर्वाह है। दारु तो कोई भी पी सकता है समुद्र मंथन में लक्ष्मी के बाद वारुणी (दारु )ही निकली थी जिसे देवताओं ने लेने से इंकार कर दिया। उसे राक्षस सहर्ष ले गए।
राजा परीक्षित ने जब कलियुग (एक छद्म राजा के वेश में) को एक गाय और वृषभ (बैल ,सांड ) को बे -तरह बे -रहमी से मारते हुए देखा तो उसे अपने राज्य से बाहर निकलने का दंड दिया माफ़ी मांगने पर क्षमा करते क्षमा दान देते हुए कहा -जहां पर जूआ खेला जाता है ,शराब पी जाती है या फिर सोना रखा जाता है वहां पर तुम रह सकते हो। उनके राज्य में ऐसा कोई स्थान नहीं था ,मदवि में कहाँ से आ गया ?
एक प्रतिक्रिया :पोस्ट दया लाठिया की पर
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