मित्रों!

आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं।

बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए।


फ़ॉलोअर

सोमवार, 21 सितंबर 2015

अब घर में गेजटाचार्य पल्लवित हो रहें हैं स्वत :स्फूर्त स्वयंभू ब्रह्मा से।




अब घर में गेजटाचार्य पल्लवित हो रहें हैं स्वत :स्फूर्त स्वयंभू ब्रह्मा से। कमाल की बात ये है कान इनके फिर भी खरगोश से हैं चौकस २४/७ हर आहट पर । अन्ना २४/७ चौकन्ना। ये बैठे बैठे रसलीन गैजेट्स बांचते हैं माँ बाप इन्हें चुग्गा देते हैं।जब तक ये दस बारह बरस के नहीं हो जाते यही सिलसिला चलता है। न इन्हें खाने का रंग मालूम न स्वाद।चेंज आफ एनवायरनमेंट इन्हें कतई पसंद नहीं है। अलबत्ता Terraria,Minecraft,SuperSmashbros में ये पूर्णतया प्रवीण हैं। कोई डिजाइन इनसे तैयार करवा लो। 3DS,IPad ,Tablet इनकी मित्रमंडली है। जैविक मित्र भी हैं इन आभासी संगी साथियों के अलावा लेकिन ,वे भी इन्हीं गैजेटों से लैस आते हैं एक दूजे से मिलने। सब मिलके गैजेट्स का सामूहिक आस्वाद लेते हैं। जैसे श्रीकृष्ण संकीर्तन कर रहें हों ,महामंत्र हरे रामा हरे रामा रामा रामा हरे हरे ,हरे कृष्णा हरे कृष्णा ,कृष्णा अकृष्णा हरे हरे का जाप कर रहे हों।
ये एक से दूसरे शहर में चले आते हैं इनका रोज़नामचा इनके गेट्स जस के तस रहते हैं। रास्ते की छटा प्रकृति नटी के कुदरती आ-कर्षणों से इनका नाता टूटा टूटा सा है। ये इनडोर हो गए हैं पूर्णात्मानंद से स्वयं में पर्याप्त। एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :
मायाजाल
यह सर्वविदित है कि मानव शरीर सिर्फ एक शरीर नहीं बल्कि असंख्य कोशिकाओं कासमूह है और सभी मिलकर एक खूबसूरत तन की रचना करते हैं। सारी प्रक्रियाएं जो शरीरद्वारा किये जाते हैं वह हर एक कोशिका भी करती है। हर तरह से सक्षम होते हुए भीकोशिका को वह स्वरुप नहीं मिल पाता जो शरीर के साथ रहने पर मिलता है।
परिवार को बिलकुल इसी तरह से समझा जा सकता है। एक पूरा मकान कई कमरों वालाघर होता है। हर कमरा अपने आप में परिपूर्ण है। वहां हर साधन मौजूद रह सकता है।कमरा ही बैठका,कमरा ही रसोई,कमरा ही मनोरंजन और कमरा ही डाइनिंग होता है। नकोई रोक न कोई टोक। आज़ादी ही आज़ादी। संयुक्त परिवार टूटा तो कम से कमन्यूक्लिअर परिवार तो रहा जहाँ माता पिता और एक या दो बच्चे मस्त हो गए। परिवार केनाम पर थोडा बंधन ज्यादा आज़ादी मिली। समय मिलने पर बाक़ी लोगों का गेट टुगेदरभी हो जाता था।
अब नए नए गैजेट्स ने इस नन्हे से परिवार को भी बिखरा दिया हैं। घर के बाहर कीआभासी दुनिया ही रास आने लगी है। यह भी पता नहीं होता की घर में कौन है या कौनबाहर गया है। पहले टेलीफोन एक स्थान पर हुआ करता था। घंटी बजने पर कोई आकरफोन रिसीव कर लेता था। अब सबके अपने फ़ोन है और वह भी पासवर्ड के घेरे में। कोईकिसी की मोबाइल नहीं ले सकता। दो अलग अलग कमरों में बैठे लोगों को मिस्ड कॉल सेबुलाया जाता है। नाम लेकर जोर जोर से बुलाने की परम्परा भी लुप्त होती जा रही है।
एक बार तो हद ही हो गयी। किसी रिश्तेदार के घर गयी थी। वे बड़े चाव से घर के बारे कुछकुछ बता रही थी जो शायद उनकी बिटिया को पसन्द नहीं आ रहा था। अचानकव्हाट्सअप की टुन्न से आवाज़ आई । मोबाइल देखने के बाद उन्होंने अचानक टॉपिकबदल दिया। अब समझ में तो यह बात आ ही गई कि बिटिया रानी की ओर से चुप रहनेका आदेश था।
एक ही कमरे में में बैठे सभी सदस्य अपने अपने लैपटॉप पर या अपनी मोबाइल लेकरमस्त हैं। पूरी दुनिया से संवाद चालू है मगर आपस में बातचीत नहीं। बीच बीच में कुछबातें हुई भी तो काम चलने भर ही हुईं। खाने की टेबल पर खाना लग चूका होता है ठंडा भीहो जाता है सबके जुटते हुए। आए भी तो बायें हाथ से मोबाइल चिपका ही रहता है। खानाखाओ और साथ में टिप टाप भी करते रहो। महिलाएं भी अब पीछे नहीं। किसी खानाखज़ाना टाइप ग्रुप से जुडी है तो पहले फ़ोटो खींची जायेगी। फिर रेसिपी लिखी जायेगी तबघर वालों के लिए परोसी जायेगी।
एक करीबी रिश्तेदार के घर कुछ यूँ देखा। घर की माता जी जो नब्बे से पार हो चुकी हैं औरचलने फिरने से लाचार थी, एक कमरे में बैठी थीं। कमरे में सारी सुविधाएं थीं पर वे इसतरह लाचार थी कि स्वयं पानी लेकर नहीं पी पाती थीं। घर के सदस्य उच्च वोल्यूम परटीवी चलाकर देख रहे थे। इधर वो बुजुर्ग महिला पानी के लिए आवाज़ दे रही थी मगरटीवी के शोर में आवाज़ दब जा रही थी। उनकी आँखों में आंसू आ गए थे। कहने का कोईफायदा नहीं था क्योंकि इससे कोई फायदा न होता।
आखिर यह आधुनिकता या आधुनिक उपकरण इंसान को किस मंजिल की और लेकर जारहे है।
अपने ही खोल में समाते जा रहे हैं लोग कछुए की तरह। दिन भर फेसबुक पर बने रहने कीप्रवृति क्षणिक ख़ुशी दे रही है पर जीवन वही तो नहीं, यह किशोर बच्चे समझ नहीं पा रहे। जीवन आसान हो गया है गैजेट्स से | कहीं न कहीं निष्क्रियता का भी बोलबाला हो रहा है|
इन सब से बचिए| समय संयोजन बहुत आवश्यक है| मायाजाल पर रहें, खूब रहें पर समय सीमा भी निर्धारित करें| गैजेट्स को एनज्वाय करे| उसे जीवन मत बनने दें|
*ऋता*

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें