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शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

अब किसकी शरण गहें कैसे ,ये सोनी मोनी मूढ़ मते । आओ मिलकर अरदास करें ,तब शरणम जय जगदीश हरे

डॉ. वागीश मेहता की लम्बी कविता दूसरी और अंतिम किश्त 


               
तौबा तौबा तौबा तौबा ,आप -बाप की तौबा तौबा 
                                               
                                             
                       (१)
              
              वह तूं तूं  था अब 'आप' बना ,

              संगी साथी का बाप बना ,

              कद बढ़ा चढ़ा जिन कन्धों पर ,

              उनके सिर का संताप बना । 

              कई दन्तुल खबरी आन मिले ,

              कई 'संजू' 'सिसोद ''कुमार " घने ,

यह गिरोह भयंकर रूप धरे ,

अब तो बस हरिहर लाज रखे।।  


                                (२ )

अब जंतर मंत्र मंच बना ,मिलकर रचा प्रपंच घना ,

एक बलि मानवी लेनी  थी ,धर नाम किसानी कहनी थी। 

दौसा सुत गजेन्द्र छबीला था ,सजधज पगड़ी गर्वीला था ,

अब इसे गिरोह ने फांस लिया ,रजनेता बनेगा झांसा दिया ।। 

बस लटक वृक्ष पर चढ़ना है ,मरने का नाटक करना है । 

वे उन झांसों से छले गए ,अब तो बस हरिहर लाज रखे ॥।

                                  (३) 

वह देहाती सीधा सादा था ,न भांप सका वह इरादा था । 

वह नाटक जिसको समझा था ,उसके जीवन का फंदा था ॥ 

नीचे से बजती ताली थी ,जो शोर शराबे वाली थी । 

कुछ सम्भले के पाँव फिसल गया ,और सचमुच में वह लटक गया ॥ 

भाषण के भौंपू बजते थे ,वे दांत निपोरे हँसते थे । 

पटकथा गुप्त थे कई चेहरे ,अब तो बस हरिहर लाज रखे ॥ 

                                  (४) 

पटना वालों से यारी है ,भीतर से धुक धुक जारी है । 

कहीं भेद नहीं खुल जाए कभी  ,बस यही चिंता ही सारी है ॥ 

हाय होगी कैसी मजबूरी ,फिर तिहाड़ कितनी दूरी । 

सब किया धरा रह जाएगा ,मुंह पर कोयला पुत जाएगा ॥ 

ये सोच सोच डर लगता है ,सब जगह गजिंदर दिखता है ॥ 

साथ में दिल्ली की 'खाकी ',एनजीओ नहीं कोई साथी । 

कब तक सच छिपाए रखें ,अब तो बस हरिहर लाज रखे ॥ 

                                (५)

अब किसकी शरण गहें कैसे ,ये सोनी मोनी मूढ़ मते । 

आओ मिलकर अरदास करें ,तब शरणम जय जगदीश हरे ॥ 

हे नीते ललुवे कुछ कर दो ,संजु ,सिसदे दन्तुल वर दो । 

हैं शिथिल प्राण ऊर्जा भर दो ,हे प्रभु अराजक को बल दो ॥ 

हे नमो तुम्हीं ऐसा कर दो ,खाली झोली मेरी भर दो । 

बस दिल्ली पुलिस हवाले कर दो ,फिर नए उत्पात का कौशल दो ॥  

ये 'भारती ' जय विजय करे ,अब तो बस हरिहर लाज रखे। 

तौबा तौबा तौबा तौबा ,आप -बाप की तौबा तौबा ॥  

विशेष : अराजक केजरीवाल की करतूतों  से प्रेरित है रचना ,इसमें सचमुच 

के पात्र भरे ,

चिह्नांकित  इनको तुम करना ,अपना इसमें अब क्या कहना। 

वीरेन्द्र शर्मा (वीरुभाई )

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