अप बल ,तप बल और बाहुबल ,चौथा है बल राम , सूरकिशोर कृपा से सब बल ,हारे को हरिनाम।
हारे को हरिनाम
सुने री मैंने निर्बल के बलराम ,पिछली साख भरूँ संतन की आड़े सँवारे काम।
जब लग गज बल अपनो बरत्यो ,नेंक सरयो नहीं काम ,
निर्बल होइ बलराम पुकारो ,आये आधे नाम।
द्रुपद सुता निर्बल भईं तादिन ,तजि आये निज धाम ,
दुस्शासन की भुजा थकित भैं ,वसन रूप भये राम।
अप बल ,तप बल और बाहुबल ,चौथा है बल राम ,
सूरकिशोर कृपा से सब बल ,हारे को हरिनाम।
श्रीमद भागवदपुराण में जो स्वयं भगवान का ग्रन्थ अवतार है गज -ग्राह प्रसंग आता है। क्षीरसागर के निकट त्रिकुट नाम का एक भीमकाय परबत था जिसकी तलहटी (खाई )में एक विशाल वन था। यहां गजेन्द्र नामक एक गज अपने परिवार के साथ रहता था। इसके बल से शेर भी बचके निकलता था। पास ही एक विशाल सरोवर था। एक दिन की बात है गज अपनी प्यास भुजाने सरोवर पर आया। पहले पेट भरके पानी पीया फिर जलक्रीड़ा करने लगा। अपनी सूंड में भर भरके हथनियों पर पानी उड़ेलने लगा। कुछ देर तक ये प्रेमलीला चली अचानक हाथी को अपने पाँव पर खिंचाव महसूस हुआ। वह आश्वस्त था अपने बल पर ,एक झटका मारूंगा और जो भी बाधा है वह दूर जाके गिरेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। रस्साकशी का खेल शुरू हो गया।
इसी विशाल सरोवर में एक ग्राह (मगरमच्छ )भी रहता था जिसका यहां एकच्छ्त्र राज्य था। हाथी की जलक्रीड़ा से सारे सरोवर का जल गंदला हो चुका था। यकायक ग्राह ने जल की सतह पर आकर मदमस्त हाथीं का पाँव अपने खूंखार मुख में दबोच लिया। एक हज़ार वर्षों तक दोनों में युद्ध चला। जल का पशु जल में शक्तिशाली होता है थल का थल में। हाथी के शरीर से खून का निरंतर स्राव हो रहा था जिससे ग्राह तो लगातार पुष्ट हो रहा था गज क्षीण।
अब गज का अपने ऊपर यकीन चुकने लगा। ग्राह इसे लगभग लगभग निगल चुका था बस थोड़ी से सूंड ही बाहर रह गई थी। अहंकार का स्थान दैन्य ने ले लिया।आखिर में शरणागति ही काम आई।
पूर्व जन्म में यही गज एक राजा था जिसका नाम इन्द्रद्युम्न था। विष्णुभक्त था ये प्रतापी राजा। एक बार की बात है इसके महल में अगस्त्य मुनि पधारे। ये उस समय ध्यान मगन था। इसने अगस्त्य का सत्कार नहीं किया। अगस्त्य ने अपनी उपेक्षा और इसके अहंकार से कुपित होकर इसे अगले जन्म में हाथी की काम लोलुप योनि में पैदा होने का शाप दे दिया।
अब संकट के समय इसे अपने पूर्व जन्म का स्मरण हुआ। स्मृति से ही रचना बनती है। क्योंकि यह राजा पूर्व जन्म में विष्णुभक्त था इसने सरोवर से एक पुष्प उठाकर विष्णु को याद करते हुए अर्पित किया। अभी हरि नाम गले में ही अटका हुआ था कि इसके दैन्य को देखकर विष्णुभगवान गरुण पर दौड़ पड़े . सूंड पकड़कर इसे बाहर निकाला। साथ में ग्राह भी बाहर आ गया जो हाथी को लगभग निगल चुका था। ये ग्राह भी पूर्व जन्म में हुहू नाम का गन्धर्व था। यह भी अपने पूर्व जन्म के किसी कृत्य से शापित अब ग्राह योनि भोग रहा था। विष्णु ने दोनों का उद्धार किया।
लोग पूछते हैं ग्राह का उद्धार क्यों हुआ। इसका उत्तर है इसने विष्णु भक्त का चरण पकड़ रखा था। इसलिए साथ साथ यह भी सरोवर से बाहर आ गया । भगवान ने चक्र से इसका सर अलग कर दिया। जो भगवान की शरणागति आ जाता है भगवान उसका उद्धार कर देते हैं।शर्त यही है दैन्य हो अहंकार नहीं यही शरणागति की शर्त है दीनता ,पूर्ण समर्पण।
संसार का बल मोह माया रिश्ते नाते हमारे काम नहीं आते हैं। सब चले जाते हैं संकट में छोड़ के . तब इस संसार की निस्सारता का भान होता है। तब ही पता चलता है केवल हरिनाम ही सत्य है बाकी सब इस संसार में अस्थाई है। सापेक्षिक है। अभी है अभी नहीं हैं। राम का नाम ही अंत समय में काम आता है इसीलिए महाकवि सूरदास ने इस पद में गाया - सूर किशोर कृपा से सब बल ,हारे को हरि नाम।
भावार्थ :जो मार्ग भगवान की ओर जाता है वह कभी नष्ट नहीं होता। भक्ति का प्रताप कभी न कभी अपना फल देता है।
जब तक गज संसार उन्मुख था अपने बल पर भरोसा किये था अहंकार रखे था वह ग्राह की पकड़ से मुक्त नहीं हो सका। संसारियों (बन्धुबान्धवों हथनियों ,गज शावकों )ने भी आरम्भिक कोशिशों के बाद इसे मुक्त कराने के प्रयासों से पल्ला झाड़ लिया।
आखिर में भगवान का नाम ही काम आया। द्रौपदी की सारी चेष्टा खुद को निर्वसन होने से बचाने में लगी थी ,न पति पांडवों का बल काम आया न स्वयं का बल काम आया हालांकि द्रौपदी ने अपने दांतों से साड़ी के पल्लू को भरसक दबाया। जब द्वारकाधीश को याद किया तो भगवान वस्त्र अवतार के रूप में ही प्रकट हुए।जैसी स्मृति होती है वैसी ही संरचना भगवान की सामने आती है। भगवान के अनंत अवतार हुए हैं। दुर्योधन की सारी चेष्टा द्रौपदी को नग्न करने की थी उसकी बाजुओं का बल चुक गया लेकिन द्रौपदी की साड़ी का विस्तार कम नहीं हुआ।
https://www.youtube.com/watch?v=9Q76BCgSto4
सुने री मैंने निर्बल के बलराम ,पिछली साख भरूँ संतन की आड़े सँवारे काम।
जब लग गज बल अपनो बरत्यो ,नेंक सरयो नहीं काम ,
निर्बल होइ बलराम पुकारो ,आये आधे नाम।
द्रुपद सुता निर्बल भईं तादिन ,तजि आये निज धाम ,
दुस्शासन की भुजा थकित भैं ,वसन रूप भये राम।
अप बल ,तप बल और बाहुबल ,चौथा है बल राम ,
सूरकिशोर कृपा से सब बल ,हारे को हरिनाम।
श्रीमद भागवदपुराण में जो स्वयं भगवान का ग्रन्थ अवतार है गज -ग्राह प्रसंग आता है। क्षीरसागर के निकट त्रिकुट नाम का एक भीमकाय परबत था जिसकी तलहटी (खाई )में एक विशाल वन था। यहां गजेन्द्र नामक एक गज अपने परिवार के साथ रहता था। इसके बल से शेर भी बचके निकलता था। पास ही एक विशाल सरोवर था। एक दिन की बात है गज अपनी प्यास भुजाने सरोवर पर आया। पहले पेट भरके पानी पीया फिर जलक्रीड़ा करने लगा। अपनी सूंड में भर भरके हथनियों पर पानी उड़ेलने लगा। कुछ देर तक ये प्रेमलीला चली अचानक हाथी को अपने पाँव पर खिंचाव महसूस हुआ। वह आश्वस्त था अपने बल पर ,एक झटका मारूंगा और जो भी बाधा है वह दूर जाके गिरेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। रस्साकशी का खेल शुरू हो गया।
इसी विशाल सरोवर में एक ग्राह (मगरमच्छ )भी रहता था जिसका यहां एकच्छ्त्र राज्य था। हाथी की जलक्रीड़ा से सारे सरोवर का जल गंदला हो चुका था। यकायक ग्राह ने जल की सतह पर आकर मदमस्त हाथीं का पाँव अपने खूंखार मुख में दबोच लिया। एक हज़ार वर्षों तक दोनों में युद्ध चला। जल का पशु जल में शक्तिशाली होता है थल का थल में। हाथी के शरीर से खून का निरंतर स्राव हो रहा था जिससे ग्राह तो लगातार पुष्ट हो रहा था गज क्षीण।
अब गज का अपने ऊपर यकीन चुकने लगा। ग्राह इसे लगभग लगभग निगल चुका था बस थोड़ी से सूंड ही बाहर रह गई थी। अहंकार का स्थान दैन्य ने ले लिया।आखिर में शरणागति ही काम आई।
पूर्व जन्म में यही गज एक राजा था जिसका नाम इन्द्रद्युम्न था। विष्णुभक्त था ये प्रतापी राजा। एक बार की बात है इसके महल में अगस्त्य मुनि पधारे। ये उस समय ध्यान मगन था। इसने अगस्त्य का सत्कार नहीं किया। अगस्त्य ने अपनी उपेक्षा और इसके अहंकार से कुपित होकर इसे अगले जन्म में हाथी की काम लोलुप योनि में पैदा होने का शाप दे दिया।
अब संकट के समय इसे अपने पूर्व जन्म का स्मरण हुआ। स्मृति से ही रचना बनती है। क्योंकि यह राजा पूर्व जन्म में विष्णुभक्त था इसने सरोवर से एक पुष्प उठाकर विष्णु को याद करते हुए अर्पित किया। अभी हरि नाम गले में ही अटका हुआ था कि इसके दैन्य को देखकर विष्णुभगवान गरुण पर दौड़ पड़े . सूंड पकड़कर इसे बाहर निकाला। साथ में ग्राह भी बाहर आ गया जो हाथी को लगभग निगल चुका था। ये ग्राह भी पूर्व जन्म में हुहू नाम का गन्धर्व था। यह भी अपने पूर्व जन्म के किसी कृत्य से शापित अब ग्राह योनि भोग रहा था। विष्णु ने दोनों का उद्धार किया।
लोग पूछते हैं ग्राह का उद्धार क्यों हुआ। इसका उत्तर है इसने विष्णु भक्त का चरण पकड़ रखा था। इसलिए साथ साथ यह भी सरोवर से बाहर आ गया । भगवान ने चक्र से इसका सर अलग कर दिया। जो भगवान की शरणागति आ जाता है भगवान उसका उद्धार कर देते हैं।शर्त यही है दैन्य हो अहंकार नहीं यही शरणागति की शर्त है दीनता ,पूर्ण समर्पण।
संसार का बल मोह माया रिश्ते नाते हमारे काम नहीं आते हैं। सब चले जाते हैं संकट में छोड़ के . तब इस संसार की निस्सारता का भान होता है। तब ही पता चलता है केवल हरिनाम ही सत्य है बाकी सब इस संसार में अस्थाई है। सापेक्षिक है। अभी है अभी नहीं हैं। राम का नाम ही अंत समय में काम आता है इसीलिए महाकवि सूरदास ने इस पद में गाया - सूर किशोर कृपा से सब बल ,हारे को हरि नाम।
भावार्थ :जो मार्ग भगवान की ओर जाता है वह कभी नष्ट नहीं होता। भक्ति का प्रताप कभी न कभी अपना फल देता है।
जब तक गज संसार उन्मुख था अपने बल पर भरोसा किये था अहंकार रखे था वह ग्राह की पकड़ से मुक्त नहीं हो सका। संसारियों (बन्धुबान्धवों हथनियों ,गज शावकों )ने भी आरम्भिक कोशिशों के बाद इसे मुक्त कराने के प्रयासों से पल्ला झाड़ लिया।
आखिर में भगवान का नाम ही काम आया। द्रौपदी की सारी चेष्टा खुद को निर्वसन होने से बचाने में लगी थी ,न पति पांडवों का बल काम आया न स्वयं का बल काम आया हालांकि द्रौपदी ने अपने दांतों से साड़ी के पल्लू को भरसक दबाया। जब द्वारकाधीश को याद किया तो भगवान वस्त्र अवतार के रूप में ही प्रकट हुए।जैसी स्मृति होती है वैसी ही संरचना भगवान की सामने आती है। भगवान के अनंत अवतार हुए हैं। दुर्योधन की सारी चेष्टा द्रौपदी को नग्न करने की थी उसकी बाजुओं का बल चुक गया लेकिन द्रौपदी की साड़ी का विस्तार कम नहीं हुआ।
Nirbal ke Bal Ram-Shri Purshottam jalotaji pupil bhajan
by AATMA T V- 1 year ago
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Nirbal ke Bal Ram sung by Shri Purshottam jalotaji pupil bhajan Lord Krishna is the Supreme Person.Krishna is the eightth ...- HD
https://www.youtube.com/watch?v=9Q76BCgSto4
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