ये कुब्जा कोई औरत नहीं है हमारी बुद्धि ही कुब्जा हो जाती है रजो और तमो गुणों के प्रभाव से। जब हम कृष्ण से विमुख होकर कंस से अभिमुख हो जाते हैं तब हमारी बुद्धि कुब्जा हो जाती है। भले भागवद्पुराण के दशम स्कंध में कुब्जा की कथा है लेकिन आध्यात्मिक अर्थों में कुब्जा और कोई नहीं मंथरा के संसर्ग से होने वाली कैकई की कुबुद्धि है कुब्जा।
कुब्जा का एक अर्थ है वक्र ,बाँकी ,टेढ़ी ,उलटी चाल चलने वाली।
कथा है मथुरा के बाज़ार से कृष्ण और दाऊ जी की जोड़ी गुज़रती है। कृष्ण के नथुनों में चंदन की सुवास प्रवेश करती हैभाव संसिक्त हो कृष्ण बलराम से कहते हैं दाऊ ये सुवास कहाँ से आ रही है पास आकर देखते हैं एक स्त्री चांदी के पात्र में चंदन घिसा लिए बैठी है। यह स्त्री कुब्जा है क्योंकि इसको कुब्ब निकला हुआ है हंच-बेक है ये महिला जो कंस की दासी है नित्य उसके तमाम शरीर पर चंदन का लेप करती है। उसी के संसर्ग से इसकी बुद्धि कुब्जा हो गई है -रजो और तमो गुणों के प्रभाव क्षेत्र में कैद हो गई है।
कृष्ण इस महिला से पूछते हैं :हे सुंदरी आप कौन हैं। महिला अभिभूत हो जाती है कहती है आपने मुझे सुंदरी कहा। सुंदरी तो तुम हो ही -कन्हैया बोले। मुझे तो आज तक किसी ने सुंदरी कहके सम्बोधित नहीं किया सब मुझे कुब्जा कहके मेरा मुंह बिराते हैं। वे लोग तुम्हारा शरीर देखते हैं मैं तुम्हारी आत्मा देख रहा हूँ। मेरा तुम्हारा जन्मों का नाता है। हाँ भगवन मुझे भी आपको देखकर यही लगता है मैं कई जन्मों से आपका ही इंतज़ार कर रही थी। बोले कृष्ण आज हमें चन्दन लगा दो। कुब्जा दोनों के लिए चांदी की चौकी बिछाती है और बीच बाज़ार में दोनों के माथे पे तिलक लगाती है कपोलों पर चंदन से फूल बनाती है।
भगवान खड़े होकर आहिस्ता से अपना एक पैर उसके एक पैर पर रखते है और अपनी दो उंगलिया उसकी ठोड़ी के नीचे रखकर बस एक हल्का सा झटका देते हैं। कुब्जा की झुकी हुई कमर सीधी हो जाती है भगवान के स्पर्श से उसके सब पाप शाप मिट जाते हैं वह परमसुंदरी के रूप में खिल उठती है।
कृष्ण के संपर्क में आकर अर्थात शुद्धसत्व से सम्पर्कित होने पर वह रजो और तमो गुणों के प्रभाव से मुक्त हो जाती है। हम इस त्रिगुणात्मक माया के जाल में ही फंसे रहते हैं -सतो ,रजो और तमो गुण -हर क्षण हमें अपनी गिरिफ्त में लिए रहते हैं। ये ही असली करता हैं कर्म के। गीता में कहा गया है गुण ही गुणों को बरतते हैं अर्थात ये त्रिगुणात्मक प्रकृति ही करता है हम अपने आपको करता मान कर्तित्व अभिमान में आ जाते हैं। मेरा कर्म है ये मैंने किया है ये। ये मेरा है। ये मैं और मेरा ही तो माया है।
मैं और मोर तोर ते माया
जेहि बस कीन्हें जीव निकाया।
हमारे भीतर हर क्षण किसी एक गुण का प्राबल्य बना रहता है कोई एक गुण बाकी दो को दबाये हमने दबोच लेता है बस वैसा ही कर्म हो जाता है।
रावण रजो गुण (एक्शन ) का प्रतीक है कुम्भकरण तमोगुण (अज्ञान,घोर -प्रमाद, आलस्य निद्रा)का प्रतीक है और विभीषण सतो गुण का। यही सत्व उसे भगवान राम की शरण में ले आता है। कंस रजो और तमो दोनों का मिश्र है।
Krishna Kubja Leela | Hunchbacked Woman Salvation
Courtesy: SagarArts Krishna, the supreme personality of God, tests Kubja and turns her into beautiful lady...
कुब्जा का एक अर्थ है वक्र ,बाँकी ,टेढ़ी ,उलटी चाल चलने वाली।
कथा है मथुरा के बाज़ार से कृष्ण और दाऊ जी की जोड़ी गुज़रती है। कृष्ण के नथुनों में चंदन की सुवास प्रवेश करती हैभाव संसिक्त हो कृष्ण बलराम से कहते हैं दाऊ ये सुवास कहाँ से आ रही है पास आकर देखते हैं एक स्त्री चांदी के पात्र में चंदन घिसा लिए बैठी है। यह स्त्री कुब्जा है क्योंकि इसको कुब्ब निकला हुआ है हंच-बेक है ये महिला जो कंस की दासी है नित्य उसके तमाम शरीर पर चंदन का लेप करती है। उसी के संसर्ग से इसकी बुद्धि कुब्जा हो गई है -रजो और तमो गुणों के प्रभाव क्षेत्र में कैद हो गई है।
कृष्ण इस महिला से पूछते हैं :हे सुंदरी आप कौन हैं। महिला अभिभूत हो जाती है कहती है आपने मुझे सुंदरी कहा। सुंदरी तो तुम हो ही -कन्हैया बोले। मुझे तो आज तक किसी ने सुंदरी कहके सम्बोधित नहीं किया सब मुझे कुब्जा कहके मेरा मुंह बिराते हैं। वे लोग तुम्हारा शरीर देखते हैं मैं तुम्हारी आत्मा देख रहा हूँ। मेरा तुम्हारा जन्मों का नाता है। हाँ भगवन मुझे भी आपको देखकर यही लगता है मैं कई जन्मों से आपका ही इंतज़ार कर रही थी। बोले कृष्ण आज हमें चन्दन लगा दो। कुब्जा दोनों के लिए चांदी की चौकी बिछाती है और बीच बाज़ार में दोनों के माथे पे तिलक लगाती है कपोलों पर चंदन से फूल बनाती है।
भगवान खड़े होकर आहिस्ता से अपना एक पैर उसके एक पैर पर रखते है और अपनी दो उंगलिया उसकी ठोड़ी के नीचे रखकर बस एक हल्का सा झटका देते हैं। कुब्जा की झुकी हुई कमर सीधी हो जाती है भगवान के स्पर्श से उसके सब पाप शाप मिट जाते हैं वह परमसुंदरी के रूप में खिल उठती है।
कृष्ण के संपर्क में आकर अर्थात शुद्धसत्व से सम्पर्कित होने पर वह रजो और तमो गुणों के प्रभाव से मुक्त हो जाती है। हम इस त्रिगुणात्मक माया के जाल में ही फंसे रहते हैं -सतो ,रजो और तमो गुण -हर क्षण हमें अपनी गिरिफ्त में लिए रहते हैं। ये ही असली करता हैं कर्म के। गीता में कहा गया है गुण ही गुणों को बरतते हैं अर्थात ये त्रिगुणात्मक प्रकृति ही करता है हम अपने आपको करता मान कर्तित्व अभिमान में आ जाते हैं। मेरा कर्म है ये मैंने किया है ये। ये मेरा है। ये मैं और मेरा ही तो माया है।
मैं और मोर तोर ते माया
जेहि बस कीन्हें जीव निकाया।
हमारे भीतर हर क्षण किसी एक गुण का प्राबल्य बना रहता है कोई एक गुण बाकी दो को दबाये हमने दबोच लेता है बस वैसा ही कर्म हो जाता है।
रावण रजो गुण (एक्शन ) का प्रतीक है कुम्भकरण तमोगुण (अज्ञान,घोर -प्रमाद, आलस्य निद्रा)का प्रतीक है और विभीषण सतो गुण का। यही सत्व उसे भगवान राम की शरण में ले आता है। कंस रजो और तमो दोनों का मिश्र है।
Krishna Kubja Leela | Hunchbacked Woman Salvation
https://www.youtube.com/watch?v=nO_h6AESdfE
Courtesy: SagarArts Krishna, the supreme personality of God, tests Kubja and turns her into beautiful lady...
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