चलो फिर एक बार
अनजान हो जाए
मिटा दें वो सभी यादें
जो केवल हमारी—तुम्हारी थी
जिनमें सिर्फ मैं और तुम थे
कॉफी के साथ हुई उन
हज़ारों बातों को भुलाकर
फिर मंगाते है उम्मीदों की
कॉफी का एक नया—ताजा कप
और हां इस बार कॉफी में
शक्कर मैं मिलाउंगी
तुम अक्सर कंजूसी कर
जाते हो
चलो फिर एक शुरूआत करें
अनजान बन कर
अनजान हो जाए
मिटा दें वो सभी यादें
जो केवल हमारी—तुम्हारी थी
जिनमें सिर्फ मैं और तुम थे
कॉफी के साथ हुई उन
हज़ारों बातों को भुलाकर
फिर मंगाते है उम्मीदों की
कॉफी का एक नया—ताजा कप
और हां इस बार कॉफी में
शक्कर मैं मिलाउंगी
तुम अक्सर कंजूसी कर
जाते हो
चलो फिर एक शुरूआत करें
अनजान बन कर
सुन्दर.अच्छी रचना.रुचिकर प्रस्तुति .; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ
जवाब देंहटाएंकभी इधर भी पधारिये ,
dhanyvaad sir
हटाएंभाव स्तर पर अच्छी रचना ,पुराना छोड़ आगे बढ़ो ,कुछ नया करो और अभी करो।
जवाब देंहटाएंdhanyvaad sir
हटाएंपुराने रास्ते से निकलने का यही तरीका है -अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट साधू या शैतान
latest post कानून और दंड
dhanyvaad sir
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएं