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शनिवार, 28 सितंबर 2013

ये नक्काशी करने वाले....

एहसासों पर नक्काशी करने का 
अजब हुनर है उनमें
जाने कब से एहसासों को पत्थर
मान बैठे है और
तैयार है हर बार एक नया चित्र
उकेरने को

उनका ये हुनर जाने कितने
एहसासों को लील गया
जाने कितने ही भाव इस हुनर के
भार से हार गए

कितने ही अनजाने एहसासों को
कुरेद चुके है अब तक
उनके इस हुनर ने एहसासों को
जमकर रूलाया है

हुनर की चमक से कलाकार तो वो
उम्दा हो गए
लेकिन बस एहसास हार गए
एहसास हार गए

9 टिप्‍पणियां:

  1. बिना एहसास के ज़िंदा हूँ ,

    जीए जा रहा हूँ -

    इसलिए कि जब कभी एहसास लौटें खैर मकदम कर सकूं।

    सुन्दर भाव बोध (आधुनिकता बोध की रचना ).

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बिना एहसास के ज़िंदा हूँ ,

      जीए जा रहा हूँ -

      इसलिए कि जब कभी एहसास लौटें खैर मकदम कर सकूं। bahut sundar

      हटाएं
    2. बिना एहसास के ज़िंदा हूँ ,

      जीए जा रहा हूँ -

      इसलिए कि जब कभी एहसास लौटें खैर मकदम कर सकूं। bahut sundar

      हटाएं
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (29-09-2013) तुकबन्दी: चर्चामंच - 1383 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  3. श्रीमान आपकी लेखनी अत्त्यन्त ही रोचक और शिक्षाप्रद है,ह्रदय से आभार व्यक़्त करता हूँ

    जवाब देंहटाएं