सकल सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी होता है |
बीज नित्य नव आशाओं के मानव बोता है |
जाने कितनी नयी नयी सुख -सुविधा भोगीं ,
कष्ट पड़े फिर भला आज तू क्यों रोता है |
सुख साधन के हेतु उचित-अनुचित सब भूला,
जो भी जग को दिया वही तो अब ढोता है |
उचित व अनुचित मानव तभी समझ पाता है,
जब उसको अनुभव कष्टों का भी होता है |
ईश्वर की है देन, कष्ट से क्या घबराना,
खरा वही है जो न कष्ट में, धीरज खोता है |
ईश्वर का कर धन्यवाद, दुखों के कारण,
इस असार जग का सत-ज्ञान तुझे होता है |
कष्ट पड़ें, चिंता क्या, आने-जाने हैं,
कष्टों से प्रभु पापकर्म तेरे धोता है |
सब कुछ ईश्वर के ही ऊपर छोड़ श्याम तू,
मिलता तुझको वही सदा जो तू बोता है ||
बीज नित्य नव आशाओं के मानव बोता है |
जाने कितनी नयी नयी सुख -सुविधा भोगीं ,
कष्ट पड़े फिर भला आज तू क्यों रोता है |
सुख साधन के हेतु उचित-अनुचित सब भूला,
जो भी जग को दिया वही तो अब ढोता है |
उचित व अनुचित मानव तभी समझ पाता है,
जब उसको अनुभव कष्टों का भी होता है |
ईश्वर की है देन, कष्ट से क्या घबराना,
खरा वही है जो न कष्ट में, धीरज खोता है |
ईश्वर का कर धन्यवाद, दुखों के कारण,
इस असार जग का सत-ज्ञान तुझे होता है |
कष्ट पड़ें, चिंता क्या, आने-जाने हैं,
कष्टों से प्रभु पापकर्म तेरे धोता है |
सब कुछ ईश्वर के ही ऊपर छोड़ श्याम तू,
मिलता तुझको वही सदा जो तू बोता है ||
सहज बोध और गीता ज्ञान की काव्यात्मक अभिव्यक्ति। सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (01-10-2013) मंगलवारीय चर्चा 1400 --एक सुखद यादगार में "मयंक का कोना" पर भी है!
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद वीरेन्द्र जी ......
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री जी.....
जवाब देंहटाएंSunder.
जवाब देंहटाएंश्रीमान आपकी लेखनी अत्त्यन्त ही रोचक और शिक्षाप्रद है,ह्रदय से आभार व्यक़्त करता हूँ
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