उठो जागो ओ देखो हम पतन कि ओर जा रहे |
प्रमन के सूर्य पर बादल ये काले फिर से छा रहे |
झगड़ते वर्ग को लेकर कही पर धरम को लेकर ,
जी रहे एक झूठी शान झूठे भरम को लेकर |
झगड़ कर आप ही शक्ति को अपनी हम घटा रहे|
प्रमन के सूर्य पर बादल ये काले फिर से छा रहे|
जिसे अपना समझ माँ भारती ने प्यार से पाला,
उसी कि साजिशो ने देश को बरबाद कर डाला |
निरख ये दृश्य केवल अश्रुधारा हम बहा रहे |
प्रमन के सूर्य पर बादल ये काले फिर से छा रहे|
युवाओं अब उठो न देश यूँ बर्बाद होने दो ,
विदेशी ताकतों को अब नहीं आबाद होने दो |
यही वो लोग है आपस में हम को जो लड़ा रहे |
प्रमन के सूर्य पर बादल ये काले फिर से छा रहे|
बचे यह देश हमको एक होना ही पडेगा अब ,
करें प्रण आज से आपस में कोई न लडेगा अब |
हमारी नफरतो का लाभ शत्रु गण उठा रहे|
प्रमन के सूर्य पर बादल ये काले फिर से छा रहे|
ऐसी भावना सभी में जागे। ………. सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार-8/09/2013 को
जवाब देंहटाएंसमाज सुधार कैसे हो? ..... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः14 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra