
Answer.The law of karma is so complex that it involves multiple factors Let me explain step by step this question ,by first describing the three kinds of karmas :
(1)sanchit (संचित कर्म )
(२)prarabdh(प्रारब्ध कर्म )
(३ )kriyaman (क्रियमाण कर्म )
हमारे अनेकानेक जन्मों का बहीखाता परमात्मा के पास रहता है। इन्हें संचित कर्म कहा जाता है।जन्म के समय हम संचित कर्मों का कुछ हिस्सा भी अपने साथ लिए इस संसार प्रवेश करते हैं। सुख दुःख दोनों से संपृक्त रहता है यह अंश। यही प्रारब्ध कर्म कहलाता है। जो हमारे पूर्व जन्म के कर्मों का फल है ,अच्छा या बुरा जो हम को भोगना ही है। लेकिन अलावा इसके अपने वर्तमान जन्म में हम कोई भी कार्य करने के लिए स्वतंत्र हैं।इस जन्म के कर्म ही क्रियमाण कर्म हैं। ये पूर्व निर्धारित नहीं हैं। हमारे पुरुषार्थ पर निर्भर करते हैं। हम इनमें रद्दो बदल जब चाहें कर सकते हैं। कर्मों का फल जो हमें इसी जीवन में मिलता है भुगतना पड़ता है वह एकाधिक बातों पर निर्भर करता है :
(१)हमारे प्रारब्ध कर्म
(२) क्रियमाण कर्म
(३) ईश्वरेच्छा
(४) अन्य लोगों के कर्म भी उस हालात में जो उस समय वहां उपस्थित
होते
हैं हमें असर ग्रस्त करते हैं।
(५ )Chance events in which we happen to be present by accident
यानी मौक़ा बे -मौक़ा हमारा यूं ही कहीं पहुँच जाना बिना मंशा के।
हर फल की भोगना का कारण हम अपनी अल्प बुद्धि से जान भी नहीं
सकते हैं। फिर हमें अपने पूर्व किये गए सभी कर्मों का इल्म भी कहाँ
रहता है जो हम वर्तमान की भोगना के साथ संगती बिठा सकें।
मुंबई आतंकी हमले में जो लोग मारे गए थे वह उनके कर्मों की भोगना का
ही फल था ऐसा दो टूक नहीं कहा जा सकता। हो सकता है उनका आखिरी
वक्त आ गया हो और अचानक उसी समय आतंकी हमला भी वहां हो
गया।
हो सकता है नतीजा इस भोगना का उल्लेखित में से कोई कारण रहा हो।
मनुष्य के लिए यह जानना मुमकिन नहीं है कब कौन से कर्म फल की
भोगना उसके हिस्से में आती है।
इसी हमले में बहुत से लोग आकस्मिक तौर पर बच भी गए थे। कुछ
लोगों को वहां इन्हीं होटलों में किसी बैठक में आना तो था लेकिन
अजीबोगरीब कारण से
वह वहां पहुँच ही नहीं सके थे। और कुछ अन्य लोग यहाँ आकस्मिक तौर
पर ही पहुंचे थे पूर्वनिर्धारित नहीं था उनका आना। प्रकृति के अनेक रहस्य
हमारे लिए अबूझ ही बने रहते हैं जब हम भगवान् को प्राप्त होते हैं तभी
इनका भेद खुलता है।ईश्वर पर ही छोड़ दिया जाए इस सवाल का सटीक
ज़वाब हमने तो मात्र एक संगति बिठाई है।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है हम इस सामाजिक बुराई से पल्ला झाड़
लें हमें अपने स्तर पर भी इससे आइन्दा बचे रहने के उपाय करते रहना है।
नागर सतर्कता अपना रोल प्ले करती है। इसीलिए संतों ने कहा है :
प्रयत्न में सावधान फल में संतुष्ट।
ॐ शान्ति।
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