माया और योगमाया
माया परमात्मा की उस बाहरी भौतिक ऊर्जा को कहा जाता है जिससे उसने यह विश्व रचा है। निश्चेतन (जड़ ,चेतना शून्य ,निर्जीव )है माया। मैटीरियल एनर्जी है माया। गोचर जगत के सूक्ष्म और स्थूल सभी पदार्थ माया से ही उपजे हैं। योगमाया परमात्मा की निजिक (नैजिक )शक्ति है जिससे वह अपनी शेष सभी शक्तियों का विनियमन करता है शासन करता है शेष शक्तियों पर योगमाया से परमात्मा।दिव्यनिजी शक्ति है परमात्मा की योगमाया जो उसकी शेष शक्तियों पर भी शासन करती है।
परमात्मा का दिव्य लोक रहवास योगमाया की ही सृष्टि है। इसी के माध्यम से वह अवतार रूप में इस संसार में आता है। कृष्ण का विलास है मनबहलाव है यही योगमाया। इसी योगमाया से वह हमारे हृदय में वास करता है हमारे तमाम कर्मों को देखता है। स्वयं अगोचर बना रहता है।
उसके रूप की मिठास परमानंद है यही योगमाया। कृष्ण की बंसी की टेर है यही योगमाया। यही लीला पुरुष का रास (रास लीला है ). उसके गुणों का आगार है यह।उसका लालित्य चारु भाव है यही योगमाया। परमात्मा की कृपा इसी योगमाया से मिलती है। परमात्म प्रेम की प्राप्ति यही करवाती है।
माया को शासित करके सृष्टि रचती है योगमाया। सृष्टि की दिव्यमाँ स्वरूपा है योगमाया। दुर्गा ,सीता ,काली ,राधा ,लक्ष्मी ,मंगला ,पार्वती का मूर्त रूप है यही योग माया। यहाँ दो तो हैं ही नहीं। कृष्ण राधा का शरीर है राधा कृष्ण का। इसीलिए राधे श्याम हैं और सीता राम हैं।शंकर के घर भवानी है योगमाया। ये साधारण नारियां नहीं हैं दिव्या हैं। योगमाया के ही विभिन्न प्रगट रूप हैं ये विशिष्ठ नारियां(देवियाँ )।
ॐ शान्ति
माया परमात्मा की उस बाहरी भौतिक ऊर्जा को कहा जाता है जिससे उसने यह विश्व रचा है। निश्चेतन (जड़ ,चेतना शून्य ,निर्जीव )है माया। मैटीरियल एनर्जी है माया। गोचर जगत के सूक्ष्म और स्थूल सभी पदार्थ माया से ही उपजे हैं। योगमाया परमात्मा की निजिक (नैजिक )शक्ति है जिससे वह अपनी शेष सभी शक्तियों का विनियमन करता है शासन करता है शेष शक्तियों पर योगमाया से परमात्मा।दिव्यनिजी शक्ति है परमात्मा की योगमाया जो उसकी शेष शक्तियों पर भी शासन करती है।
परमात्मा का दिव्य लोक रहवास योगमाया की ही सृष्टि है। इसी के माध्यम से वह अवतार रूप में इस संसार में आता है। कृष्ण का विलास है मनबहलाव है यही योगमाया। इसी योगमाया से वह हमारे हृदय में वास करता है हमारे तमाम कर्मों को देखता है। स्वयं अगोचर बना रहता है।
उसके रूप की मिठास परमानंद है यही योगमाया। कृष्ण की बंसी की टेर है यही योगमाया। यही लीला पुरुष का रास (रास लीला है ). उसके गुणों का आगार है यह।उसका लालित्य चारु भाव है यही योगमाया। परमात्मा की कृपा इसी योगमाया से मिलती है। परमात्म प्रेम की प्राप्ति यही करवाती है।
माया को शासित करके सृष्टि रचती है योगमाया। सृष्टि की दिव्यमाँ स्वरूपा है योगमाया। दुर्गा ,सीता ,काली ,राधा ,लक्ष्मी ,मंगला ,पार्वती का मूर्त रूप है यही योग माया। यहाँ दो तो हैं ही नहीं। कृष्ण राधा का शरीर है राधा कृष्ण का। इसीलिए राधे श्याम हैं और सीता राम हैं।शंकर के घर भवानी है योगमाया। ये साधारण नारियां नहीं हैं दिव्या हैं। योगमाया के ही विभिन्न प्रगट रूप हैं ये विशिष्ठ नारियां(देवियाँ )।
ॐ शान्ति
सच कहा..
जवाब देंहटाएं---कृष्ण का विलास-लीला पुरुष का रास है -यही तो सगुन-अगुन लीलामाया है....कर्म योग है...
--- सगुनही अगुनही नहीं कछु भेदा...यही ज्ञान है .और....
---रूप रेख बिनु जाति जुगति बिनु निरालम्ब मन चकृत धावै |
सब विधि अगम विचारहि ताते सूर सगुन लीला पद गावै| ......यही भक्ति है...
श्याम सो सुन्दर ही टिपण्णी लिख दी दाग्धर साहब नै। शुक्रिया दोग्धरन का।
जवाब देंहटाएंश्याम सो सुन्दर ही टिपण्णी लिख दी दाग्धर साहब नै। शुक्रिया डॉक्टरन का।
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