श्याम स्मृति ----न कहना
'न' कहना
भी एक
कला है एवं जीवन व्यवहार में अत्यावश्यक ।
यदि हम
यह जानलें
कि हमें कब व
कहाँ रुकना
है तो व्यवहार व मर्यादा
की प्रत्येक
सीमा स्वयं
तय हो
जाती है
एवं व्यक्ति
अनिर्वन्धित-बंधित
हो जाता
है, सीमाहीन -सीमित
होजाता है।
' विश्व
मैं वह
कौन सीमाहीन
है ,
हो न जिसका छोर सीमा मैं बंधा। '
हो न जिसका छोर सीमा मैं बंधा। '
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