पूर्व में मैंने नियम व नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया था
परन्तु अनुभवों व मंथन से जाना कि मैं गलत राह पर जा रहा था
नियम व नियंत्रण मानवीय जीवन में मूल्यहीन अस्तित्व खो गये हैं
मौजूद साधनाधार पर नियम व नियंत्रण कब के लोचनीय हो गये हैं
वैसे बहुत कम देखने मे आया कि इंसा रहा कभी बंधा नियमों से हैं
उसे तब कालानुसार परिस्थितियों अनुसार खुद को बदलना होता हैं
जो हवा व दरिया का पानी इस क्षण जहाँ है अगले क्षण वहाँ न होगा
कठोर नियम नियंत्रण असफल अब अगले हालातों देख निर्णय होगा
पथिक अनजाना
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