जहाँ जंगी हैं
---पथिक अनजाना—506 वीं पोस्ट
यार पूछते मुझसे लगता तुम्हें क्यों जहाँ जंगी हैं
कहता जरा नजरों मेरी से देखो हर जगह तंगी हैं
दया तो कुदरती नूर बेचारे इंसा पर मुझे आती हैं
तमाम जीवों से निकृष्ट जिन्दगी इंसा की ही होती हैं
मगर यह प्रश्नवाचक हैं चूंकि पक्ष एक ही मैंने देखा
भाषा व हाव-भाव नसमझ कारण यह खींची रेखा हैं
अन्य जीवों की
बेफिक्री स्वतंत्र व इंसानी हालात लेखा
यहाँ सागर ए
समस्यायें अन्यों की जिन्दगी बहुरंगी
होगे अब तुम सहमत हर कदम पर जंग सो जंगी हैं
पथिक अनजाना
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें