"पिताजी कहा करते थे -कम खाना और गम खाना दीर्घआयु की कुंजी है।
आदमी कम खाने से नहीं ज्यादा खाने से मरता है
रोगों को न्योता देता है।" लैब की परिस्थितियों में लेब एनिमल्स पर
किये
गए कम खुराकी कम पुष्टिकर तत्वों वाली खुराक इसकी हामी सी भर्ती
लगती है।लेकिन ज़रूरी नहीं है जो लेब की परिस्थितियों में सही हो वह
संघर्ष पूर्ण वाइल्ड लाइफ वन्य जीवन के लिए भी वैसा ही हो।
पता चला है कम पुष्टिकर खुराक कोशाओं के हानिकर क्षय होने को
उनके कैंसर युक्त होने पे लगाम कस सकती है। शरीर की टूट फूट
दुरुस्ती
की दर एवं कोशाओं के पुनर्चक्रण की क्षमता बढ़ती है ऐसी खुराक के
मिलने पर । शायद इसी
प्रकृति
प्रदत्त अनुकूलन
रणनीति के तहत खादय की कमीबेशी होने पर भी पशु संतति उत्पादन
को
निर्बाध बनाये रहते हैं। वंशवेल छीजने नहीं पाती है। इसी का अनुकरण
करते हुए एक दिन शायद साइंसदान उम्र को बढ़ने से रोकने वाली दवा
बनाने में भी कामयाब हो जाएँ फिलवक्त तो इसे जैविक विज्ञानों की
'होली -
ग्रेल' ही कहा जा सकता है।
भूख आदमी की आदिम कुदरती प्रवृत्ति है जिसके चलते शरीर पूरी
खुराक न मिलने पर कोशाओं
में बकाया बचे पुष्टिकर तत्वों को ग्रहण करने लगता है खुराक में
पुष्टिकर तत्व न मिलने पर।गर्भ थैली से बाहर आते ही नवजात को
प्लेसेंटा से पोषण मिलना थम जाता है लेकिन बच्चा स्वयं चालित
तरीके से स्तन पान करने लगता है। उसे कोई सिखाता नहीं है कि
स्तनपान ही उसके जीवन का प्राथमिक आहार है।
जहां तक कोशाओं के कैंसरग्रस्त होने से बच जाने का सवाल है तो वन्य
जीवों की जीवन लीला परजीवियों परभक्षियों के चलते जल्दी ही संपन्न
हो जाती है। आदमी तो पचासे के पार के बरस रोगों में ही बिताता है
पशुओं का रोगकारक कुछ बिगाड़े उससे पहले ही वह संघर्ष के चलते चल
बसते हैं। पढ़िए इस रिपोर्ट के पूरे निहितार्थ बांचिये फुल इम्पोर्ट इस रपट
का :
"पिताजी कहा करते थे -कम खाना और गम खाना दीर्घआयु की कुंजी है।
आदमी कम खाने से नहीं ज्यादा खाने से मरता है
रोगों को न्योता देता है।" लैब की परिस्थितियों में लेब एनिमल्स पर
किये
गए कम खुराकी कम पुष्टिकर तत्वों वाली खुराक इसकी हामी सी भर्ती
लगती है।लेकिन ज़रूरी नहीं है जो लेब की परिस्थितियों में सही हो वह
संघर्ष पूर्ण वाइल्ड लाइफ वन्य जीवन के लिए भी वैसा ही हो।
पता चला है कम पुष्टिकर खुराक कोशाओं के हानिकर क्षय होने को
उनके कैंसर युक्त होने पे लगाम कस सकती है। शरीर की टूट फूट
दुरुस्ती
की दर एवं कोशाओं के पुनर्चक्रण की क्षमता बढ़ती है ऐसी खुराक के
मिलने पर । शायद इसी
प्रकृति
प्रदत्त अनुकूलन
रणनीति के तहत खादय की कमीबेशी होने पर भी पशु संतति उत्पादन
को
निर्बाध बनाये रहते हैं। वंशवेल छीजने नहीं पाती है। इसी का अनुकरण
करते हुए एक दिन शायद साइंसदान उम्र को बढ़ने से रोकने वाली दवा
बनाने में भी कामयाब हो जाएँ फिलवक्त तो इसे जैविक विज्ञानों की
'होली -
ग्रेल' ही कहा जा सकता है।
भूख आदमी की आदिम कुदरती प्रवृत्ति है जिसके चलते शरीर पूरी
खुराक न मिलने पर कोशाओं
में बकाया बचे पुष्टिकर तत्वों को ग्रहण करने लगता है खुराक में
पुष्टिकर तत्व न मिलने पर।गर्भ थैली से बाहर आते ही नवजात को
प्लेसेंटा से पोषण मिलना थम जाता है लेकिन बच्चा स्वयं चालित
तरीके से स्तन पान करने लगता है। उसे कोई सिखाता नहीं है कि
स्तनपान ही उसके जीवन का प्राथमिक आहार है।
जहां तक कोशाओं के कैंसरग्रस्त होने से बच जाने का सवाल है तो वन्य
जीवों की जीवन लीला परजीवियों परभक्षियों के चलते जल्दी ही संपन्न
हो जाती है। आदमी तो पचासे के पार के बरस रोगों में ही बिताता है
पशुओं का रोगकारक कुछ बिगाड़े उससे पहले ही वह संघर्ष के चलते चल
बसते हैं। पढ़िए इस रिपोर्ट के पूरे निहितार्थ बांचिये फुल इम्पोर्ट इस रपट
का :
आदमी कम खाने से नहीं ज्यादा खाने से मरता है
रोगों को न्योता देता है।" लैब की परिस्थितियों में लेब एनिमल्स पर
किये
गए कम खुराकी कम पुष्टिकर तत्वों वाली खुराक इसकी हामी सी भर्ती
लगती है।लेकिन ज़रूरी नहीं है जो लेब की परिस्थितियों में सही हो वह
संघर्ष पूर्ण वाइल्ड लाइफ वन्य जीवन के लिए भी वैसा ही हो।
पता चला है कम पुष्टिकर खुराक कोशाओं के हानिकर क्षय होने को
उनके कैंसर युक्त होने पे लगाम कस सकती है। शरीर की टूट फूट
दुरुस्ती
की दर एवं कोशाओं के पुनर्चक्रण की क्षमता बढ़ती है ऐसी खुराक के
मिलने पर । शायद इसी
प्रकृति
प्रदत्त अनुकूलन
रणनीति के तहत खादय की कमीबेशी होने पर भी पशु संतति उत्पादन
को
निर्बाध बनाये रहते हैं। वंशवेल छीजने नहीं पाती है। इसी का अनुकरण
करते हुए एक दिन शायद साइंसदान उम्र को बढ़ने से रोकने वाली दवा
बनाने में भी कामयाब हो जाएँ फिलवक्त तो इसे जैविक विज्ञानों की
'होली -
ग्रेल' ही कहा जा सकता है।
भूख आदमी की आदिम कुदरती प्रवृत्ति है जिसके चलते शरीर पूरी
खुराक न मिलने पर कोशाओं
में बकाया बचे पुष्टिकर तत्वों को ग्रहण करने लगता है खुराक में
पुष्टिकर तत्व न मिलने पर।गर्भ थैली से बाहर आते ही नवजात को
प्लेसेंटा से पोषण मिलना थम जाता है लेकिन बच्चा स्वयं चालित
तरीके से स्तन पान करने लगता है। उसे कोई सिखाता नहीं है कि
स्तनपान ही उसके जीवन का प्राथमिक आहार है।
जहां तक कोशाओं के कैंसरग्रस्त होने से बच जाने का सवाल है तो वन्य
जीवों की जीवन लीला परजीवियों परभक्षियों के चलते जल्दी ही संपन्न
हो जाती है। आदमी तो पचासे के पार के बरस रोगों में ही बिताता है
पशुओं का रोगकारक कुछ बिगाड़े उससे पहले ही वह संघर्ष के चलते चल
बसते हैं। पढ़िए इस रिपोर्ट के पूरे निहितार्थ बांचिये फुल इम्पोर्ट इस रपट
का :
Eat less, live longer: Cutting back on food can help repair the
body, says new study
A VERY low calorie diet could be the key to a long and healthy life, according to new research.
Eating less can boost healthier ageing by protecting the body’s cells from harmful deterioration and the
risk of cancer.
Scientists know an extreme diet does not appeal to many people but say their discovery could lead to
ways of mimicking its effects and pave the way for an “anti-ageing pill”.
Evolutionary biologist Dr Margo Adler, who led the research, said that cutting back on food leads to
increased rates of “cellular recycling” and repair mechanisms in the body.
Dr Adler, of the University of New South Wales in Australia, believes this evolved to help animals
continue to reproduce when food is scarce. Their bodies adapt by recycling and reusing nutrients
stored in the cells.
She said: “This is the most intriguing aspect from a human health standpoint. Although extended
lifespan may simply be a side effect of dietary restriction, a better understanding of these cellular
recycling mechanisms that drive the effect may hold the promise of longer, healthier lives for humans.”
The process, known as autophagy, is essential to the survival of newborn babies when they suddenly
lose their supply of nutrients from the placenta, but have yet to drink milk.
They bridge the gap by feeding on their own cells, breaking them down and releasing essential
nutrients.
Increased cellular recycling could account for the longer lifespan of laboratory animals on very low
diets.
Dr Adler said: “This effect has been demonstrated in laboratories around the world, in species ranging
from yeast to flies to mice. There is also some evidence it occurs in primates.”
Dr Adler added it may be possible to develop drugs that mimic the effect.
Writing in the journal BioEssays, she said the most widely accepted theory is that it evolved to improve
survival during times of famine. But Dr Adler added: “Most animals in the wild are killed young by
parasites or predators.
“Since dietary restriction appears to extend lifespan in the lab, it is unlikely to have the same effect on
wild animals, which generally do not live long enough to be affected by cancer and other late life
pathologies.”
Scientists have known for decades that severely restricted food intake reduces the incidence of cancer
and can even reverse diabetes.
People who restrict calories or combine diets with exercise usually improve their blood pressure, body
fat and cholesterol levels, heart rate and weight.
These factors cut the risk of chronic diseases. But the side effects can include reduced bone density,
memory loss, dizziness and depression.
In 2012, a study found that a low calorie diet can slow down ageing and ward off diabetes, cancer and
dementia. Other studies have pointed to the need to cut food intake by about 40 per cent to live 20 to
30 per cent longer.
Cutting down our intake could help the body regenerate more effectively (GETTY)
- Express.co.uk - 1 day agoA VERY low calorie diet could be the key to a long and healthy life, according to new research.
बहुत खूब वाह !
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