कोई चाह नही है---पथिक अनजाना –513 वीं पोस्ट
दुनिया ने उसके
खौफ की अनगिनत
दुनिया ने लोभार्थ उसके स्वर्ग
नामी
राज्य की शोहरतों की पींगें
चढा दी
दुनिया ने कभी एहसास हमें
उसके
गुलाम होने का भी करा
दिया गया
हर तरह से दुनिया ने
हर इंसा के
दिलोदिमाग
पर उसे लहरां ही दिया
किसी ने तप जप किसी ने उपवास
किसी ने वन में जीवन गवां दिया
कोई भटका तीर्थों में जाकर कोई पोथी
पुराण में कल्पना के रूप खोजता रहा
इंसा को एक लक्ष्य खिलौना रब जैसे
नाम का थमाकर युगों से भटका दिया
मैं न समझा क्यों दौडूं क्यों क्या उस
राह जाँऊ क्या शै जो उसको मैं ध्याऊ
हर लक्ष्य के पीछे कोई चाहत मकसद
होता हैं पर मेरी ऐसी कोई चाह नही है
बेवजह क्यों मैं गुरू खोजू आकार या
निराकार राह सोच सोच जीवन गवांऊ
प्रस्तुत तथ्य दुनिया के नही समझा
फिर क्यों व्यर्थ अपने को भटका दू
विचारों में अनदेखे के आकारों को सोच
भटकनों से खाली करे हृदय शांत करें
पथिक अनजाना
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