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रविवार, 23 मार्च 2014

सांसें बुलाती हैं---पथिक अनजाना -524 वीं



   सांसें बुलाती हैं---पथिक अनजाना -524 वीं  
दूरियाँ  इसलिये नही बढाई कि  मैं जिन्दगी जीना चाहता हू
जरूरत जामे की  कर्मों की  मौजूदगी जग में जाहिर करती हैं
मजबूरियों से नही मैं भयभीत नही करना बन्दगी  चाहता हू
चाहत सिर्फ शांत संगीत की जीने का सबब इंसा कोबताती हैं
संगीत धुनजब सांस की धुन के संग मिल लय बनता हैं
सारी समस्याऔ से बचने का कवच आसपास तनजाता हैं
भीतर वह मधुर धुन छाती जहाँ जिन्दगी होश खोजातीहैं
नही इच्छा फिरजहाँ में आये हिसाब बाकी सांसें बुलातीहैं
मजबूरियाँ इंसा को जीते बाद मरने मजबूर कर जाती हैं
पथिक  अनजाना



2 टिप्‍पणियां:

  1. विचित्र .....
    ----कविता के लिए सत्य तथ्य एवं अर्थवत्तात्मकता होना चाहिए ....यथा ...
    ...मजबूरियाँ इंसा को जीते बाद मरने मजबूर कर जाती हैं....कथन का कोइ अर्थ नहीं ..

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