इक धुँआ सा उठा दिया तुम ने
झूट को सच बता दिया तुम ने
लकड़िय़ाँ अब भी गीली गीली हैं
फिर भी शोला बना दिया तुम ने
तुम तो शीशे के घर में रहते हो
किस पे पत्थर चला दिया तुम ने
आइनों से तुम्हारी यारी थी
आँख क्योंकर दिखा दिया तुम ने?
नाम लेकर शहीद-ए-आज़म का
इक तमाशा बना दिया तुम ने
खिड़कियाँ बंद अब लगी होने
जब मुखौटा हटा दिया तुम ने
रहबरी की उमीद थी तुम से
पर भरोसा मिटा दिया तुम ने
तुम पे कैसी यकीं करे ’आनन’
रंग अपना दिखा दिया तुम ने
-आनन्द.पाठक
09413395592
रहबरी की उमीद थी तुम से
जवाब देंहटाएंपर भरोसा मिटा दिया तुम ने....bahut sundar
आ०उपासना जी
हटाएंआप का बहुत बहुत धन्यवाद
सादर
आनन्द पाठक