व टूटे
हुये मंजरों को-०पथिकअनजाना---530 वीं पोस्ट
न वास्ता हैं
इनका आधारहीन बकवासी
रंगीन सपनों का
इंसा का दिल
इसी बेवफाई व टूटे हुये
मंजरों को ले रोता हैं
हर युग में
यहाँ पढें गर इतिहास तो
युद्ध अपनों से होता हैं
परंपराऔ की बदबूदार
लाश क हर युग में
यहाँ इंसा ढोता हैं
चाहत गर सुगन्धित समाज
की तुम्हे अपना शब्द हटा
दो
न बांटों सीमा
भाषा पहनावे में सकून की
जिन्दगी बना दो
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें