गर कोई इंसा पूछे रास्ता अपनी मंजिल का
पूछे रास्ता फिर कहे वो कि तुम उसे पहुचा दो
परख लो दया के काबिल या षडयंत्र का हिस्सा
भावनाऔ दरियादिली पर काबू शंकित हो तो
यार देर न करो अविलम्ब ही उसे भगा देना
परिश्रम उसके लिये क्यों हो जो इशारा न साधे
ज्ञान तुम्हारा व्यर्थ गर मेरी बात गांठ न बांधे
पथिक अनजाना
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें