नही पढी किताबें मैंने दुनिया के किसी समुदाय की है
जिसे ये धर्म के नाम से पुकारते मैं समुदाय कहता हू
नही सीखी रीतिरिवाज मेरा तो ज्ञान रूकता कर्मों पर हैं
न गवांया वक्त जाने परखने पहचानने अपनाने में मैंने
जरूरत क्या जानी इक बात सब कर्मों का लेखा होता हैं
बताये क्यों लुटायें वक्त तन मन धन ये उनका ठेका हैं
रहें संयमित धैर्यवान विवेकपूर्ण व निर्मोही मेरे यार
इन चारों की छत्रछाया बिताया जीवन है सदाबहार
हर सांस में दुष्कर्म हावी होने को रहते सदा बेकरार
मिले आन्नद गर मेरी नजर से देखो दुनिया बाजार
पथिक चाहे जहाँ वह खडा हैं वहाँ आवे न कोई यार
विश्राम करते पथिक अनजाना सलाम करता हजार
पथिक अनजाना
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें