रमेश पाण्डेय
यह बात अतिशयोक्ति लग सकती है। किन्तु है कड़वा सच। देश का हर नागरिक इस समय अगर किसी समस्या से ग्रस्त है तो वह है मंहगाई और देश का हर शख्स अगर किसी समस्य से जूझ रहा है तो वह है भ्रष्टाचार। पिछले दस वर्षों में अगर इसके लिए सबसे अधिक कोई दोषी है तो केन्द्र की सत्ता पर बैठी यूपीए-1 और यूपीए-2 की सरकार। इस सरकार में भ्रष्टाचार और मंहगाई के इस बड़े आकार के लिए अगर कोई सबसे अधिक जिम्मेदार है तो वह हैं पी. चिदंबरम। देश के लिए यह दुर्भाग्य है कि पिछले दस वर्ष में मंहगाई और भ्रष्टाचार के सबसे बड़े नायक रहे पी. चिदंबरम इस बार चुनाव मैदान में नही हैं। चिदंबरम का चुनाव में न उतरना इसलिए और भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि शिवगंगा के मतदाताओं के पास अब इस बात का अवसर नहीं आएगा कि वे अपना निर्णय सुना सकें। यह निर्णय चिदंबरम के पक्ष में भी हो सकता था, पर देश अब यह कभी नहीं जान पाएगा कि शिवगंगा के मतदाता उन्हें हराना चाहते थे या फिर हराना। 2009 में लोकसभा चुनाव हो रहा था तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सत्ता में आने के बाद देश के नागरिकों से वादा किया था कि वह सौ दिन के भीतर मंहगाई कम कर देंगे। पर ऐसा नहीं हुआ। शायद इसी वजह से वह इस चुनावी घमासान में मतदाताओं के बीच नहीं आ रहे हैं। हम आपका ध्यान उस ओर दिलाना चाहेंगे, जब कांग्रेस की बुरे समय में खेवनहार प्रियंका गांधी अपनी मां सोनिया की संसदीय सीट रायबरेली पहुंची थी तो वहां के लोगों ने प्रियंका को रोककर बढ़ती मंहगाई से उन्हें अवगत कराया था। इसके बाद भी चिदंबरम साहब ने किसी की नहीं सुनी। यहां यह बताना समीचीन है कि चिदंबरम साहब के पास इतना इंटेलेक्चुअल इरोगेंट है कि वह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक की न हीं चुनते थे। यह बात इससे और भी साबित हो जाती है कि अब जब चिदंबरम साहब चुनाव लड़ने से भाग रहे हैं तो राहुल गांधी ने उनसे चुनाव लड़ने को कहा, पर उन्होंने उनकी भी बात नहीं मानी। जब पूरा देश भ्रष्टाचार और मंहगाई से परेशान था तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का यह बयान आया था कि पैसा पेड़ों पर नहीं फलता। अब जब जनता की बारी आयी तो ऐसे सूरमा चुनाव मैदान से भाग खड़े हुए। इन कांग्रेसी सूरमाओं को इस बात का अंदाजा है कि जनता क्या फैसला सुनाएगी। इसीलिए शायद कांग्रेस के कई दिग्गज चुनाव लड़ने से बच रहे हैं। इससे भी दुखद यह है कि ऐसे समय में जब कांग्रेस के युवराज एक-एक वोट के लिए जूझ रहे हैं और जनता के बीच जा रहे हैं तो यह सारे इंटेलेक्चुअल एरोगेंट रखने वाले उनके सहयोगी मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए हैं। और भी दुखद यह है कि ऐसे ही इंटेलेक्चुअल एरोगेंट से ग्रसित नेताओं को राजनीति के पिछले दरवाजे यानी राज्यसभा में भेज दिया जाएगा। ऐसे में जनता का निर्णय धरा का धरा रह जाएगा। काश इन नेताओं को जनता के निर्णय के आधार पर स्थान दिया जाता तो शायद कांग्रेस को आज यह दिन देखने को न मिलते।
यह बात अतिशयोक्ति लग सकती है। किन्तु है कड़वा सच। देश का हर नागरिक इस समय अगर किसी समस्या से ग्रस्त है तो वह है मंहगाई और देश का हर शख्स अगर किसी समस्य से जूझ रहा है तो वह है भ्रष्टाचार। पिछले दस वर्षों में अगर इसके लिए सबसे अधिक कोई दोषी है तो केन्द्र की सत्ता पर बैठी यूपीए-1 और यूपीए-2 की सरकार। इस सरकार में भ्रष्टाचार और मंहगाई के इस बड़े आकार के लिए अगर कोई सबसे अधिक जिम्मेदार है तो वह हैं पी. चिदंबरम। देश के लिए यह दुर्भाग्य है कि पिछले दस वर्ष में मंहगाई और भ्रष्टाचार के सबसे बड़े नायक रहे पी. चिदंबरम इस बार चुनाव मैदान में नही हैं। चिदंबरम का चुनाव में न उतरना इसलिए और भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि शिवगंगा के मतदाताओं के पास अब इस बात का अवसर नहीं आएगा कि वे अपना निर्णय सुना सकें। यह निर्णय चिदंबरम के पक्ष में भी हो सकता था, पर देश अब यह कभी नहीं जान पाएगा कि शिवगंगा के मतदाता उन्हें हराना चाहते थे या फिर हराना। 2009 में लोकसभा चुनाव हो रहा था तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सत्ता में आने के बाद देश के नागरिकों से वादा किया था कि वह सौ दिन के भीतर मंहगाई कम कर देंगे। पर ऐसा नहीं हुआ। शायद इसी वजह से वह इस चुनावी घमासान में मतदाताओं के बीच नहीं आ रहे हैं। हम आपका ध्यान उस ओर दिलाना चाहेंगे, जब कांग्रेस की बुरे समय में खेवनहार प्रियंका गांधी अपनी मां सोनिया की संसदीय सीट रायबरेली पहुंची थी तो वहां के लोगों ने प्रियंका को रोककर बढ़ती मंहगाई से उन्हें अवगत कराया था। इसके बाद भी चिदंबरम साहब ने किसी की नहीं सुनी। यहां यह बताना समीचीन है कि चिदंबरम साहब के पास इतना इंटेलेक्चुअल इरोगेंट है कि वह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक की न हीं चुनते थे। यह बात इससे और भी साबित हो जाती है कि अब जब चिदंबरम साहब चुनाव लड़ने से भाग रहे हैं तो राहुल गांधी ने उनसे चुनाव लड़ने को कहा, पर उन्होंने उनकी भी बात नहीं मानी। जब पूरा देश भ्रष्टाचार और मंहगाई से परेशान था तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का यह बयान आया था कि पैसा पेड़ों पर नहीं फलता। अब जब जनता की बारी आयी तो ऐसे सूरमा चुनाव मैदान से भाग खड़े हुए। इन कांग्रेसी सूरमाओं को इस बात का अंदाजा है कि जनता क्या फैसला सुनाएगी। इसीलिए शायद कांग्रेस के कई दिग्गज चुनाव लड़ने से बच रहे हैं। इससे भी दुखद यह है कि ऐसे समय में जब कांग्रेस के युवराज एक-एक वोट के लिए जूझ रहे हैं और जनता के बीच जा रहे हैं तो यह सारे इंटेलेक्चुअल एरोगेंट रखने वाले उनके सहयोगी मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए हैं। और भी दुखद यह है कि ऐसे ही इंटेलेक्चुअल एरोगेंट से ग्रसित नेताओं को राजनीति के पिछले दरवाजे यानी राज्यसभा में भेज दिया जाएगा। ऐसे में जनता का निर्णय धरा का धरा रह जाएगा। काश इन नेताओं को जनता के निर्णय के आधार पर स्थान दिया जाता तो शायद कांग्रेस को आज यह दिन देखने को न मिलते।
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