हम जिन्दगी के इस मुकाम पर आ गये है
जहाँ लगता मानो कोई भटकन नही हैं बाकी
मानो मेरे मयखाने का दर हम पा ही गये हैं
हैरत मयखाने में हैं मौजूद मैं व मेरी साकी
तमाशबीन कितने कहाँ कौन हम भुला गये हैं
रंग ही रंग चारों तरफ हवा में मानो हैं
मौजूद
रंगीले घुमडते बादलों पर व तले हमारा वजूद
अजान नगाडे व घन्टियाँ सुनाई नही दे रही
हैं
शतरंजी मोहरे मेरे पीछे पीठ की तरफ हो गये
हलचलें कही नही ख्याल बवाल भी सो गये हैं
सांसें एहसास देती साकी की पर हम बेखबर
हैं
सुना दुनिया कहती जीवित पर हम खो गये हैं
नही जगाना यारों मुझे सोचना चले वो गये
हैं
पथिक अनजाना
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