सिखाया अनुभवों ने क्षणिक
प्यार तो दो
मेरे यार तुम एतबार बच्चों पर न
करो
उनको जीवन पथ पर चलाने हेतू तुम
सच्चे मार्गदर्शक व
सचेतक जरूर बनो
ध्यान रखो हो तुम्हारा अन्तिम फैसला
किसी प्रतिफल की आशा न
करना
कभी
मैंने पहले लिखा
हैं निराशा की जननी
सदा से आपकी झूठी
आशा ही तो रही हैं
आशाओं की कब्र
पर परचम निराशा के
तले इंसान
सब्जबाग में सैर करता हैं
खुदा को भक्ति
की आशा इंसा से होती हैं
इंसा काटना चाहे
अभयदान की खेती को
व्यापार दोनों
करें तो परिवार कैसे बचेगा
अनेक खुदा व
शांति उपलब्ध केन्द्र सजे
निराशा नही तो
केन्द्रों की क्या वजह हैं?
पथिक अनजाना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (16-03-2014) को "रंगों के पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा मंच-1553) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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रंगों के पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'